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निरंजना यहो तो कहा मैंने। तुमने धनियों की ऊपरी तड़क-भड़क भर देखी है । तुम्हें हमारे जी का हाल क्या मालूम ?
कांति
तुम्हारे जी का हाल ? तुम्हें दुग्व है क्या कोई ?
निरंजना (हँसकर ) दुग्व !.... 'दुख भला फटक सकता है हमारे पास ? मेरे भैया लखपती, मेरे पति लखपती ! धन देवी-देवताओं को मोल ले सकता है, फिर संसार के सुखों को न ले सकेगा ?
कासि तुम तो जैसे व्यंग्य कर रही हो ।
निरंजना व्यंग्य कैसा! दुनिया यही समझती है कि सुख तो जैसे हमारे घर में टाँग तोड़कर बैठा है । तुम भी तो यही समझतो हो ?
कांति भाई, मेरी समझ में तो यह आता नहीं कि तुम्हें कोई दुख हो सकता है कभी।
निरंजना यही तो कह रही हूँ मैं कि दुग्व तो हमारी छाँह भी नहीं छू
सकता।