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________________ ( सब निरंजना ( दृढ़ता से ) सच बात कहती हूँ । भाई हैं वे ... रक्त का संबंध है उनसे । परंतु दुनिया को सदा धोखे में रखा है उन्होंने । ७८) कांति धोखा ! धोखा एक-दो को दिया ज सकता है; उन्हें तो "सभी बड़ाई करते हैं उनकी । निरंजना इमी में तो कुशल है वे ! पर ह अज्ञान है तुम्हारा जो सभी को उनका प्रशंसक समझता हो । कांति कैसे मानूँ बात तुम्हारी ? निरंजना वैसे ही जैसे अपनी सगी बहन की मानती । ( कांति उसकी और इस तरह ताकती है जैसे अब भी उसका आशय न समझी हो । ) बहन, पैसे में बड़ा बल कहा जाता है और बह बल यही है कि लोगों के मुँह पर ताला लग जाता है। भैया के प्रशासक मन की बात नहीं कहते । कांति दो-एक का ही मुँह वंड़ किया जा सकता है बहन ! निरंजना बंद किया नहीं जाता, अपने आप हो जाता है। राष्ट्र का
SR No.010395
Book TitleKarmpath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremnarayan Tandan
PublisherVidyamandir Ranikatra Lakhnou
Publication Year1950
Total Pages129
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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