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( ७७ ) शची का प्रवेश । निरंजना पानी पीकर पान खाती है । शची गिलास लेकर चली जाती है।
निरंजना बहन. स्त्री का चरित्र जान लेना जिस प्रकार पुरुष के लिए संभव नहीं है, वैसे ही वैसे ही पुरुष की प्रकृति हमारे लिए भी अत्यंत रह यपूर्ण है । जो बहुत जिन्हें हम ।
कांति
( उसकी ओर ताकती हुई ) क्या. मैं समझी नहीं मतलब तुम्हारा ।
निरंजना वही तो कहती हूँ कि जिन्हें हम बहुत मीधा सादा सजन समझते हैं, वे बड़े कु टल हो सकते हैं और जिन्हें ।
कांति तो क्या तुम्हारे भैया ..
निरंजना (सावेश) हाँ, ब त बड़ी कटु है। हमारे भैया को लोग जितना सज्जन और धर्मात्मा कहते हैं, वे... , मुझे कहते शर्म आती है, वे वैसे हैं नहीं !
कांति ( साश्चर्य ) क्या कहती हो बहन तुम !