________________
( ६६ )
राजीव
( कुछ दृढ़ता से ) उसे भी लेतो जाओ साथ अपने ; मेरा कहना मानो ।
कांति
( मुड़कर सतेज ) तुम्हारा कहना मानकर ही तो यह दशा हुई मेरी और इसकी भी ।
राजीव
( उसे शांत करने का प्रयत्न करता हुआ ) जो कुछ होना था, हो गया। इस बेचारी का क्यों मन मारती हो ? कांति
मन मारकर नहीं कटेगी तो क्या सुख से कटेगी जिंदगी तुम्हारे साथ किसी को ? ... इससे तो मुझे...
.....
राजीव
( सुँझलाकर) अच्छा भाई, क्षमा करो । लाख चाहता हूँ कि तुम्हें प्रसन्न रखूँ ; पर भाग्य ही खोटे हैं मेरे तो क्या करूँ ?
कांति
भाग्य तुम्हारे क्यों, मेरे फूटे हैं और मेरे साथ फूट गए इसके भी ।
शची
(. एक बार माता की ओर देखकर राजीव से ) पिता जी, मैं नहीं जाऊँगी कहीं ।