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( ६५ ) चाहती हो ) जायगी तू........"कपड़े भी हैं ठीक तेरे पास ?
[शची सहमकर चुप हो जाती है और पिता जी की ओर देखती हुई आकर अपनी जगह बैठ जाती है। कांति पुत्री पर एक दृष्टि डालकर राजीव की ओर देखने लगती है। राजीव सर उठाकर अपराधी की भाँति उसकी ओर ताकता है। कांति दूसरी ओर मुह फेर लेती है । शची कभी माता की ओर देखती है और कभी पिता की ओर । वातावरण क्षण भर के लिए स्तब्ध हो जाता है। ]
राजीव ( अधीन स्वर में ) क्या एक भी फिराक नहीं है. इसके पास ठीक ?
कांति ( उसकी ओर देखती हुई ) पंचासों बनवा दी हैं न तुमने ? (कुछ रुककर शची की ओर मुँह फेरकर ) होती तो किसी और के लिए रख लेती मैं ?
राजीव (साहसपूर्वक ) अभी उस दिन तो बनी थीं दो ?
कोति
· मोटी फिराक पहनाकर मैं नहीं ले जा सकती इसे अपने साथ । ( शची की ओर देखकर ) यहीं रहना ; आती हूँ मैं थोड़ी देर में।
शची सर नीचा कर लेती है ; कांति बाहरी द्वार की ओर बढ़ती है । राजीव बेटी की तरफ देखने लगता है।]