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( ६५. )
राजीव (आस्वर में ) न, बेटी, तू जरूर जायगी अभी । ( पत्नी की ओर देखकर ) बता सकती हो कहाँ जाना है तुम्हें इस समय ?
कांति
(आतंकित होकर सीधे ढंग से ) माधवी के यहाँ जा रही हूँ। कीर्तन है ; सेठ जी कह गये हैं।
राजीव कौन ? सेठ लालचंद ? (कुछ सोंच में पड़ जाता है ) जब मैं बाहर था, तब यहाँ बहुत आता था ; वही न ?
कांति (कुछ संकोच से ) हाँ, कभी कभी वे आया करते थे। अक्सर उनके यहाँ कथा-वार्ता होती रहती है। आज भी कीर्तन है।
राजीव . पर मुझसे तो नहीं कहा उन्होंने ?
कांति वे जानते हैं कि ऐसे लोग कहीं आने-जाने के नहीं। सिर्फ दुनियादारी निभाने को कह गये हैं उन्हें भी भेजना। पर कपड़े तो............।
राजीव (आवेश में ) तब आज मैं जाऊगा जरूर और जाऊँगा