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कर्तव्य-पालनादर्श सुझाया जगत को; चिर ऋणी संसार समस्त तव रहेगा; पूर्ण सफल होगी शुभ कामना तुम्हारी ।
पढ़ती थीं उन पर लाल-लाल किरणें, अनुराग से अनुरञ्जित हुअा हो जैसे । रवि भी; कर रहा हो प्रालिङ्गन मोद से ।
मन्द-मन्द बह रही थी वायु शीतल मी, परसतो वह बार-बार श्रीचरणाम्बुजों को, प्रमन्नता हो रही थी बड़ी मन में उमे. स्व-मौभाग्य सराहतो हो मानो मुदित हो; अथवा प्रकट करती थी स्व भाव यही---- धन्य हे तुम्हें वीरवर, त्याग को तुम्हारे ।
हिलते थे सुपल्लव शीश पर उनके कुछ मृदुलता से, अति ही रुचिरता से; समाती न हो प्रफुल्लता व्यों अङ्ग-अङ्ग में; अथवा कह रहे हो तरुवर उनसेधन्य है तुम्हें वीरवर ! त्याग को तुम्हारे ।
सजल नयन हुये वे, प्रेमाश्रु झलके गांबुजों में । शुभ दर्शनार्थ श्रीवर के उठाया उन्होंने निजानन गद्गद्कण्ठ हो ।