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________________ ( ११६ ) (प्रवेश करके) ठीक, ईश्वर बड़ा दयालु है ! उसको दया पर विश्वास रखने में ही हमारा कल्याण हो सकता है। (बैठकर) आश्रो बैठो। (दोनों बैठते है ) मैंने अभी तक तुम्हें जाने नहीं दिया। इसका विशेष कारण है । दोनों आज्ञा दीजिए गुरुदेव ! ईसा _ मैं आज एक बात पूछना चाहता हूँ (दोनों विशेष उत्सुक होते है) बात तुम्हें विचित्र लगेगी, परन्तु न जाने क्यों पूछने की इच्छा हो पायी है। दोनों (एक दूसरे की ओर देखकर) क्या आज्ञा है हमारे लिए ? ईसा आज तक हम सब का ध्येय था जनता की सेवा करना। सुखी रहकर, दुखी होकर जिस तरह से भी हुआ अब तक हम सब इस मार्ग पर बढ़ते रहे । मैं जानना चहता हूँ कि मेरे बाद क्या तुम लोग इस काय को आगे बढ़ ते रहोगे ? दोनों आप के बाद""यह क्या कहते हैं आप ! ईसा मैंने तुमसे कहा न कि न जाने क्यों आज इन बातों की
SR No.010395
Book TitleKarmpath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremnarayan Tandan
PublisherVidyamandir Ranikatra Lakhnou
Publication Year1950
Total Pages129
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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