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भी अधिक है । कुछ कारण समझ में आता है इसका ?
दूसरा कारण !... मैं तो मुझे आज कुछ अनहोनी घटना घटित होतो दिखायी देती है।
पहला ईश्वर दया करे ! धर्मपिता के अंतिम दर्शन जब मैने किये थे तब उनके मुख परभी ऐसी ही रह यमयता थी । वे बराबर मेरी तरफ इस तरह देखते हैं कि जैसे कुछ कहना चाहते हों, परन्तु न जाने क्या क जाते हैं।
दूसरा ठोक कह रहे हो ; इतनी देर की बातचीत में ही कई बातें तो अधूरी कहीं उन्होंने और कई का उत्तर नहीं - ...
(किसी के आने की आहट होती है। दोनों द्वार की ओर देखने लगते है। कोई आता नहो ।
पहला इस मकान में आज न जाने कैसा भय सा लगता है ।
दूसरा मेरा कलेजा भी धड़क रहा है ; जी रोऊँ - रोऊँ सा हो रहा है।
पहला ईश्वर का ही अब सहारा है । वही दया" "