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________________ ( १८७ ) ईसा तुम्हारी याद ! तुम लोगों का स्नेहपूर्ण व्यवहार, तुम्हारा आतिथ्य प्रेम, तुम्हारी उदारता, क्या भुलाने से भी कोई भूल सकता है ? भारत य भारत में तुम्हारी याद सभी किया करते हैं । तुम्हारी सरलता और स्नेहशीलता सभा के हृदय पर अकित है । ईसा गुरू जो कभी मेरी चर्चा करते हैं ? भारतीय चर्चा ! वे तो तुम्हारी प्रशंसा करते थकते हो नहीं । आश्रय में लगाये हुए तुम्हारे आम के पेड़ खूब फलते हैं गुरूजी कहते हैं कि इनकी मिठास ईसा की वाणी और व्यवहार के माधुर्य का फल है। ईसा ( नतमस्तक और गदगद ) मेरा जन्म सार्थक हुआ जो गुरुजी की मुझपर इतनी कृपा है । उनके चरण छूकर मेरा सविनय प्रणाम कहना | तीसरा शिष्य ( प्रवेश करके) एक रोगी द्वार पर है । मैंने कहा - सबेरे आना ; पर वह जाने का नाम नहीं लेता ।
SR No.010395
Book TitleKarmpath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremnarayan Tandan
PublisherVidyamandir Ranikatra Lakhnou
Publication Year1950
Total Pages129
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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