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________________ ( १८६ ) ईसा जनता के लिए नहीं, तुम्हारे लिए संभव होना चाहिए । इन विचारों पर आचरण करने से समाज में शांति होगी। सबको सुख मिलेगा। तुम जनत के सेवक हो। उसके सुख-दुख का ध्यान रखना तुम्हारा कर्तव्य है। [ ईसा के एक भारतीय सहपाठी का प्रवेश । ईसा उट कर बड़ प्रेम से हाथ पकड़ कर उसे अपने पास बैठाते हैं। दोनों शिष्य भी भारतीय का सादर अभिवादन करते है ।] ईसा आओ भाई, तुमसे बातें करते जी नहीं भरता। भारतीय (मुस्कराकर) यह मेरा सौभाग्य है। यहाँ आकर मुझे यह देख बड़ा संतोष हो रहा है कि अपने देश का उद्धार करने में बहुत-कुछ सफलता तुमने प्राप्त कर ली है। ईसा ऐसा मत कहो भाई ! प्रकृति परिवर्तनशील है। एक सी स्थिति में रहना उसकी प्रवृत्ति के प्रतिकूल है ! ऐसे परिवर्तन का श्रेय किसी व्यक्ति का ...! भारतीय निष्काम सेवा की प्रति मृति ! कभी हम लोगों की याद भी तुम्हें आती है ?
SR No.010395
Book TitleKarmpath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremnarayan Tandan
PublisherVidyamandir Ranikatra Lakhnou
Publication Year1950
Total Pages129
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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