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ईसा (तत्काल उठकर) तुमने पहले सूचना क्यों नहीं दी ? उसका रोग तो सबेरे तक मेरा रास्ता नहीं देखेगा। (भारतीय सहपाठी से) भाई, अभी आया मैं । (तीसरे शिष्य के साथ प्रस्थान)
भारतीय (ईसा के दोनों शिष्यों से) तुम्हारे देश को दशा तो बड़ी शोचनीय है !
पहला शिष्य क्या किया जाय ! राजा का अत्याचार प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। दरबार में राज्य भर के चापलूस जमा हैं। प्रजा लूटी जा रही है और धन उसका विलास में लुटाया जा रहा है । दिनदहाड़े लूट-मार होती है। प्रजा की जान-माल का कोई रक्षक नहीं है।
भारतीय यही तो सबसे बुरा है। प्रजा की रक्षा करना तो राजा का सबसे पहला कर्तव्य है।
दूसरा शिष्य प्रजा की रक्षा करना तो छोड़िए ; हमारे धर्म स्थान भी पाप के अड्डे हो रहे हैं। धर्म-कर्म करने वाले पुजारियों को हटाकर पेटू, शराबी, जुपारी और पापी व्यक्ति उनके स्थान पर महंत बना दिये गये हैं। देवस्थानों में वे ही जाने पाते हैं जो अच्छी