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________________ ( १०० ) राजीव ( सस्नेह ) पहनकर देख ठीक है तेरे । शची ( सचाव देखती हुई ) जब कहीं जाऊँगी, तब पहनूंगी। राजीब पहनकर देख तो एक बार | [ शची डरते-डरते भीतर की तरफ देखती है; फिर फिराक पहनकर प्रसन्न हो जाती है । ] राजीव जा, माता जी को दिखा श्रा और दूसरी संदूक में रख था । [ शची फिराक लिए भीतर चली जाती है। राजीव उठकर डेस्क पर से चिट्ठियाँ उठा लाता है और पलंग पर लेटकर पढ़ने लगता है । कांति का एक संतरा लिए प्रवेश । इस बार वह खद्दर की मोटी साड़ी पहने है । राजीव उसकी और अचरज से देखता है । ] क्रांति लो, यह खा लो । पहले यह साड़ी पहन राजीव I लो कांति इतने रुपए कहाँ से मिल गये ?
SR No.010395
Book TitleKarmpath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremnarayan Tandan
PublisherVidyamandir Ranikatra Lakhnou
Publication Year1950
Total Pages129
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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