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[ शची दौड़कर बंडल निकाल लाती है। राजीव खोलकर दो रेशमी फिराकें और एक साड़ी निकालता है। फिराकें पुत्री को देता है । शची एक बार माता की ओर देखकर सचाव ले लेती है । साड़ी पत्नी की ओर बढ़ाता है। कांति हाथ भी नहीं हिलाती।]
राजीव मैंने सोचा, वर्षों से तुम्हारे लिए कुछ नहीं लाया। आज एक साड़ी ही लेता चलू ।
[ कांति फिर भी हाथ नहीं बढ़ाती ; हाँ, शची की ओर सस्नेह देखती है।
राजीव जाओ अब, देर क्यों कर रही हो ?
कांति मैं वहाँ नहीं जाऊँगी अव ।
राजीव क्यों ? अभी देर थोड़े ही हो गयी है।
कांति
फिर देखा जायगा किसी दिन ।
राजीव अच्छा तो एक बार यह साड़ी पहन लो। [ कांति 'अभी आयी' कहकर जल्दी से भीतर चली जाती है । राजीव उसकी ओर सप्रेम देखने लगता है । शची अपनी एक फिराक लिए लंबाई नापती है। ] .