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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ सू.४८ नागकुमाराणां भवनादिद्वारनिरूपणम् ७५५ परिसाए' वाद्यायां जातायां पपदि 'देवीणं केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता' देवीनां कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता-कवितेलि स्थितिविषयक: प्रश्ना, भगवानाह'गोयमा' इत्यादि, 'गोयला' हे गौतम ! 'धरणस्स रन्नो' धरणस्य नागकुमारेन्द्रस्य नागकुमारराजस्य 'अमितरियार परिसाए' आभ्यन्तरिकायां समिताभिधानायां पर्षदि 'देवाणं साइरेगं अद्धलि भोवमं ठिई पन्नत्ता' देवानां सातिरेकमर्धपल्यो. पमं स्थितिः प्रज्ञप्ता, 'मज्झिमियाए परिसाए देवाणं' माध्यमिकाया द्वितीयस्या चण्डामिधानायां पदि देवानाम् 'अद्धलिओवम ठिई पन्नत्ता' अद्धएल्योपमप्रमाणा स्थितिः प्रज्ञप्ता, तथा-'बाहिरियाए परिसाए देवाण' बाह्यायां जाताभिधानायां पर्षदि देवानाम् 'देस् णं अद्धपलिओवम ठिई पन्नत्ता' देशोनं-देशतोन्यूनमर्धपल्योपन स्थितिः प्रज्ञप्ता, एबम्-धरणेन्द्रस्य नागकुमारराजस्य 'अन्मि'अभितरियाए परिसाए देवीणं केवतियं कालं ठिती पण्णता मज्झसिघाए परिसाए देवीणं केवयं कालं ठिती पण्णत्ता वाहिरियाए परिसाए देवीणं केवइथं झालं ठिई पण्णत्ता आम्धन्तर परिषदा की देवीयों की स्थिति मिलने काल की है ? मध्यमा परिषदा के देवीयों की स्थिति कितने काल की है ? एवं बाह्य परिषदा के देवीयों की स्थिति कितने बाल की है ? इलके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं 'गोयमा धरणसारको अभितरियाए परिसाए देवाणं साइरेगं अद्धपलिओजम ठिई पन्नता' हे गौतम ! नागकुमारेन्द्र नागकुमारराज धरण की आभ्यन्तर परिषदा के देशों की स्थिति कुछ अधिक अद्ध पल्योपम की है झिमिशाए परिसाए देवाणं अद्धपलिओवम ठिई पण्णसा' मध्यम्द परिषदा के देशों की स्थिति-आयुष्काल-अर्द्ध पल्पोपम की है 'वहिरियार परिसाए देवाणं देसूणं अद्धपलिओवमं ठिई पण्णत्ता' बाह्य बाहिरियाए परिसाए देवीण' केवइय काल ठिई पण्णत्ता' AGयन्त२ परिषहानी દેવિયેની સ્થિતિ કેટલા કાળની છે ? મધ્યમ પરિષદાની દેવિયાની સ્થિતિ કેટલા કાળની છે? તેમજ બાહ્ય પરિષદાની દેવિયની સ્થિતિ કેટલા કાળની छ १ मा प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री ४९ छ में 'गोयमा ! धरणस्स रण्णो अभित. रियाए परिवाए देवाणं साइरेग अद्धपलिओवम ठिई पण्णत्ता' गीतम! નાગકુમારે નાગકુમારરાજ ધરણની આક્યુતર પરિષદાના દેવાની સ્થિતિ ४४ वारे मध यस्योपभनी छे. 'मज्झिमियाए परिसाए देवाणं अद्धपलिओवम ठिई पगत्ता' मध्यम परिषहाना हेवोनी स्थिति मायुष्या पक्ष्ये।५मनी छे. 'वाहिरियाए परिसाए देवाणं देसूणं अद्ध गलि ओवम ठिई पण्णत्ता' माह પરિષદાના દેવેની સ્થિતિ કંઈક કમ અર્ધ પલ્યોપમની છે. એ જ પ્રમાણે
SR No.010389
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages929
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size61 MB
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