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जीवामिगम
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वरियार परिसाए देवीणं' आभ्यन्तरिकायां समिताभिधानायां प्रथमायां पर्पदि देवीना 'देणं अद्धपगोवमं ठिई एन्दत्ता' देशोनं-देशतो न्यूनमदुर्धपल्योपम स्थितिः प्रज्ञप्ता, 'मन्झिमियाए परिसाए देवीणं' माध्यमिकायां चण्डाभिधानायां पर्पदि देवीनाम् 'साइरेगं चउमागपलिओनम ठिई एन्नता' सातिरेकं चतुर्भाग पल्योपमं पल्योपमस्य सातिरेकचतुर्थी मागः स्थितिः प्रज्ञप्ता, तथा - 'बाहिरियाए परिसाए देवीणं' वाह्यायां जाताभिधानायां चरमायां पर्पदि देवीनाम् 'चउभाग पलिओम ठिई पन्नत्ता' चतुर्भाग पल्योपमस् पल्योपमस्य चतुर्भागप्रमाणास्थिति भवतीति । 'अहो जहा चमरस्स' अर्थों यथा चमरस्य,
अयं भावः - भदन्त ! धारणस्य नागकुमारेन्द्रस्य नागकुमारराजस्य केन कारणेन तिस्रः पर्पदः प्रज्ञप्ताः, समिता चण्डा जाता आभ्यन्तरिका समिता, माध्यमिका चण्डा, वाया जातेत्यादिकं सर्वे चमरासुरकुमारेन्द्रासुरराजवदेव ज्ञातव्यमिति ||
परिषदा के देवों की स्थिति कुछ कम अर्द्धपल्योपम की है इसी तरह नागकुमारेन्द्र नागकुमारराज धरण की आभ्यन्तर परिषदा की देवियों की स्थिति 'देवतृणं अपलिओन ठिई पण्णत्ता' कुछ कम अर्द्ध पत्योपस की स्थिति कही गई है 'झिमिधाए परिसाए देवीणं साइरेगं चभागपलिओदमं ठिई पण्णत्ता' मध्यमा परिषदा के देवियों की स्थिति कुछ अधिक पल्पोपन के चतुर्थ भाग प्रमाण है 'अट्टो जहा चमरस्स' इस सूत्र पाठ का ऐसा तात्पर्य है - हे भदन्त । नामकुमारेन्द्र-नागकुमा रराज वरण की ये तीन परिषदाएं किस प्रकार से आपने कहीं हैं ? तो हे गौतम! तुम्हारे इस प्रश्न का उत्तर असुरकुमारेन्द्र असुरकुमारराज
मर के प्रकरण में जैसा इस म्बन्ध में कहा गया है वैसा ही है अतः (- समुच्चय) वहीं से यह समझा जा सकता है ?
નાગકુમારેન્દ્ર નાગકુમારરાજ ધરણુની આભ્યન્તર પરિષદાની દૈવિયેાની ફેકૂળ अद्धपलिओम' ठिई पण्णत्ता' भ अर्ध पयेोयभनी छे. 'मज्झमियाए परिसाए देवीणं साइरेग' चउभागपलिओम' ठिई पण्णत्ता' मध्यमा परिषहानी हेवियानी स्थिति ४६ पधारे पयोभना योथा लाग प्रभाशुनी छे. 'अट्ठो जहा વરરસ' આ સૂત્રપાઠનું તાત્પર્ય એવું છેકે હે ભગવન્ નાગકુમારેન્દ્ર નાગકુમાર રાજ ધરણુનીએ ત્રણ પરિષદાઓ શા કારણથી આપે કહી છે ? ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી કહે છે કે હું ગૌતમ ! આ તમારા પ્રશ્નના ઉત્તર અસુરકુમારેન્દ્ર અસુરરાજ ચમરના પ્રકરણમાં આ વિષયમાં જેવું કથન કરવામાં આવેલ છે, એજ પ્રમાણે છે. જેથી ત્યાંથીજ આ પ્રશ્નના ઉત્તર સમજી લેવા. આ રીતે ઔધિક નાગકુમારતુ અને દક્ષિણ દિશાના નાગકુમારનુ નિરૂપણુ કરીને હવે સૂત્રકાર ઉત્તર દિશામાં