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जीवामिगमसूत्रे
टीका- 'इमा णं भंते ।' इयं खलु भदन्त | 'रयणप्पभा पुढची' रत्नमभा पृथिवी ' कइविहा पन्नत्ता' कतिविधा - कतिप्रकारका प्रवता - कथितेति प्रश्नः, भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'तिविध पन्नत्ता' त्रिविधात्रिपकारिका प्रज्ञप्ता - कथिता, मकारत्रयं दर्शयति 'तं जहा ' इत्यादि, 'तं जहा ' तद्यथा - 'खरकंडे' खरकाण्डम् काण्ड नामविशिष्टो भूभाग खरं कठिनम् तथा च कठिन भूमागः खरकाण्डम् | 'पङ्कचहुले कंडे' पबहुलं काण्ड द्वितीयम्, पङ्कस्य कर्दमस्य बहुलता - आधिक्यं विद्यते यत्र तादृशं काण्डं पबहुलं काण्डमिति । 'आवबहुले कंडे' अबहुलं काण्डम् अपो जलस्य बाहुल्य माविक्यं विद्यते यत्र तादृर्श काण्डमन्बहुलं काण्डम् तत्तृतीयमिति, वदेनं खरकाण्ड पङ्कत्रहुलकाण्डा
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अब सूत्रकार रत्नप्रभा आदि पृथिवी सम्बन्धी भेदों के प्रकार कहते हैं'इमाणं भंते ! रयण पभा पुढवी षड् विहा पन्नत्ता' - इत्यादि ।
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टीकार्थ- गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है- 'माणं भेते ! रयणप्पभा पुढवी कहविहा पत्ता 'हे भदन्त ! यह रत्नप्रभा पृथिवी कितने प्रकार की कही गई हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं - 'गोधमा । तिविहा पन्नत्ता' 'हे गौतम! रत्नप्रभा पृथिवी तीन प्रका की कही गई है 'तं जहा' जैसे'खरकंडे' खरकाण्ड विशिष्ट भूभाग का नाम काण्ड है कठिन का नाम खर है तथाच - कठिन जो भूभाग है वह खरकाण्ड है 'पंक बहुले कंडे' इस काण्ड में पड़ - कीचड़ की बहुलता है इसलिये इस काण्ड का नाम 'पङ्क बहुखकाण्ड' ऐसा कहा है वहुले कंडे' इस काण्ड में पानी की अधिकता है इसलिये इसे आवहुलकाण्ड कहा है इस तरह खरહવે સૂત્રકાર રત્નપ્રમા વિગેરે પૃથ્વીએના ભેદોનું કથન કરે છે 'इमाणं भंते रयणप्पभा पुढवी कइविहा पण्णत्ता' इत्याहि
टीडार्थ-गौतभस्त्राभीमे प्रभुने सेवा प्रश्न पूछयो छे 'इमा णं भंते ! रयreter पुढवी कविद्दा पण्णत्ता' हे लगवन् मा रत्नप्रमा पृथ्वी डेंटला प्रार नी उही छे ? या प्रश्नना उत्तरमा अनु छे 'गोयमा ! तिविहा पण्णत्ता' - गौतभा रत्नप्रला पृथ्वी त्रयु अारनी उड्डी छे. 'त जहा' ते त्रयु अारो 'खरकंडे' 'अर अँड विशिष्ट लूलागनु नाम डांड, नेपथानु નામ પર છે. તેથી કઠણુ એવા જે ભૂસાગ-પૃથ્વીના પ્રદેશ હોય તે ખરકાડ 'डेवाय छे. 'पंकबहुले कडे' ने मां य हव विशेषपयामां होय तेने પક બહુલ કાંડ' કહે છે. તેથી આ કાંડનુ નામ પંક બહુલ કાંડ એ પ્રમાણે छे.' 'आवबहुले कडे' ने अंडमां पाली अधिया होय तेवा अंडने 'छे. आ रीते भरमांड, उठ, अने हुडना