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प्रमेययोतिका टीका प्र. ३ . २ रत्नप्रभा पृथिव्याः मेदनिरूपणम्
मूलम् - इमा णं भंते ! रयणप्पभा पुढदी कहविहा पन्नत्ता, गोयमा ! तिचिहा पन्नता तं जहा खरकंडे पंकबहुले कंडे आव बहुलेकंडे इमीसे णं भंते! रयणप्पसा पुढवीण खरकंडे कइ विहे पन्नत्ते गोयमा ! सोलसविहेपन से से जहा - रयणकंडे बहरे२, बेरुलिएर, लोहियक्खकंडे ४, मसारले ५, हंसगब्भे६, पुल ए७, सोगंधिएट जोतिर से९ अंजणे १० अंजणपुलए ११, स्थप१२, जायरूये १३, अंके १४, फलिहे १५, रिटेकंडे १६, इसीसे णं भंते । रयणप्पभाष पुढवीए रणकंडे कवि पण्णत्ते गोयमा ! एगागारे पत्ते एवं जाव रिट्टे । इमीसेर्ण भंसे ! रयणप्पमा फुटवीय पंकबहुले कंडे कइ विहे पन्नत्ते ? गोयमा ! गागारे पन्नते । एवं आबबहुले कंडे कड़विहे पन्नत्ते ? गोयमा ! एगागारे पन्नत्ते । सकरप्पभाणं भंते ! पुढवी कइ विहा पन्नता ? गोयमा ! एगागारा पन्नता एवं जाव आहे सन्तमा ॥सू० २॥
छाया - इयं खलु भदन्त ! रत्नमया पृथिवी कविविधा प्रज्ञप्ता ? गौतम ! त्रिविधा मज्ञप्ता घथा - खरकाण्डम् १, पबहुलं काण्डम् रे, अन्हुलं काण्डम् ३, अस्यां खलु भदन्छ ! रत्नममापृथिव्यां खरकाण्ड कविविधं प्रज्ञप्तम् ? गौतम ! षोडशविधं प्रज्ञप्तम् । तद्यथा - रत्नकाण्डम् १, ६२, बैडूर्यम् २, कोहिताक्षम् ४, मसारगल्लम् ५, गर्भम् ६, पुलकम् ७, सौगन्धिक, ८, ज्योतीरसम् ९, अञ्जनम् १०, अञ्जनपुकाकम् ११, रजतम् १२, जातरूपम् १३, अङ्कम् १४, स्फटिकम् १५, रिष्टंकाण्डम् १६, एतस्यां खलु भदन्त ! रत्नप्रभा पृथिव्यां रत्नकाण्ड कतिविध प्रज्ञप्तम् ? गौतम ! एकाकारं ज्ञप्यम् । एवं यावद्रिष्टम् । एतस्यां खलु भदन्त ! रत्नप्रभा पृथिव्यां पङ्कबहुलं काण्ड कतिविधं मम् ? गौतम ! एकाकारं प्रज्ञप्तम् । एवमबहुलं काण्ड कविविधं मज्ञप्तम् १ गौतम ! एकाकारं प्रज्ञप्तम् । शर्कराममा खलु भदन्त ! पृथिवी कतिविधा मज्ञप्ता? गौतम ! एकाकारा मज्ञप्ता एवं यावदधः सप्तमी ||०२||