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________________ २१४ जीवाभिगमसूत्रे त्तस्थानादागत्य अत्र - नरकावासे समुत्पद्यन्ते 'कि असण्णीहिंतो उववज्जंति' किमसंज्ञिभ्य आगत्य आगत्योत्पद्यन्ते, अथवा - 'सरीसिवेहिंतो उववज्र्ज्जति' सरीसृपेव आगत्योत्पद्यन्ते, अथवा 'पक्खीहितो उववति' पक्षिभ्य आगत्योत्पद्यन्ते अथवा - 'चउप्परहितो उववजेति' चतुष्पदेभ्य आगत्य उत्पद्यन्ते, अथवा - 'उरगेर्हितो उववज्जंति' उरगेभ्यः सर्पेभ्य अगत्योत्पद्यन्ते, अथवा - 'इत्थियाहिंतो उववजंति' स्त्रीभ्य आगत्योत्पद्यन्ते, अथवा 'मच्छमणुए हिंतो उववज्जंति' मत्स्यमनुष्येभ्य आगत्योत्पद्यन्ते नरकावासे नरकाः ? इति प्रश्नः, भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम! ' असण्णीहिंतो उववज्जंति' असंज्ञिभ्यः संमूच्छिम पञ्चेन्द्रि येभ्य आगत्यात्र - प्रथम पृथिव्या मुत्यद्यन्ते नारकाः, 'जाव मच्छमणुर्हितो वि रयणमा पुढबीए नेरइया' हे भदन्त ! इस रत्नप्रभा पृथिवी के नरकवासों में नैरयिक जीव 'कओहिंतो उर्ववज्जंति' किस स्थान से किस गति से आकर के उत्पन्न होते हैं? 'किं असण्णीहिंतो उववज्जंति' या असंज़ियों में से आकर के उत्पन्न होते हैं ? 'सरीसिवेंहिंतो उबवज्र्ज्जति' या सरीसृपों-सुजा से सरककर चलनेवाले गोहनेवला आदि में से आकर के उत्पन्न होते हैं ? या 'पक्खीहिंतो उववज्जंति' चतुपदों में से आकरके उत्पन्न होते हैं ? या 'उरगेहिंतो उववज्नंति' वर्षो में से आकर के उत्पन्न होते हैं ! या 'इत्थिवाहितो उववज्जंति' स्त्रियों में से आकरके उत्पन्न होते हैं ? या 'मच्छमणुरहितो उवयज्जंति' मत्स्य एवं मनुष्यों में से आकरके उत्पन्न होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं - 'गोयमा ! असण्गीहिंतो उबवज्जंति जाव मच्छ प्रणुरहितो वि उयवज्जति' हे गौतम ! रनप्रभा पृथिवी के नरकावासों रयणप्पभार पुढवीए नेरहया' डे लगवन् ! म २ नअला पृथ्वीना नरावासोभां नैरयि को 'कओहिंता ववज्जंति' या स्थानभांथी मने अर्ध गतिभाषी भावीने उत्पन्न थाय छे ? 'कि' असण्णीहिता उववज्ज'ति' शु' असं ज्ञीया भांथी भावीने उत्पन्न थाय छे ? 'सरीसिवेहिंता उववज्जति' अथवा सरीसृपे। ભુાએથી ચાલવાવાળા ઘા, નાળીયા વિગેરેમાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે ? अथवा 'पक्खीहिता उववज्ज'ति' घोषणा प्राणीयेोभाथी भावीने उत्पन्न थाय हे ? अथवा 'उरगेहितेा उववज्जति' सर्योभांथी भावीने उत्पन्न थाय छे ? अथवा 'इत्थियाहिता उववज्जति' स्त्रियामांथी भावाने उत्पन्न थाय हे ? अथवा 'मच्छमणुएहि तो उववज्जति' मत्स्य मने मनुष्याभांथी भावीने ઉત્પન્ન થાય છે ? આ प्रश्नना उत्तरमां अलुश्री उडे हे 'गोयमा ! असण्णीहिंतो उववज्ज'ति' जात्र मच्छमणुरहितो वि उववज्जति हे गौतम! २त्नप्रभा પૃથ્વીના નરકાવાસોમાં નૈરિયક જીવા અસ’જ્ઞીચામાંથી પણ આવીને
SR No.010389
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages929
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size61 MB
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