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________________ प्रमेयद्योतिकाटीका प्र०२ नपुंसकस्वरूपनिरूपणम् ५२७ प्रश्नः, भगवानाह ——णपुंसगा तिविहा पन्नत्ता' नपुंसका स्त्रिविधाः - त्रिप्रकारकाः प्रज्ञप्ता' कथिता इति, त्रैविध्यमेव दर्शयति— 'तं जहा ' इत्यादि, 'तं जहा ' तद्यथा - 'नेरइयनपुंसगा' नैरयिकनपुंसका. 'तिरिक्खजोणियण पुंसगा' तिर्यग्योनिकनपुंसकाः, 'मणुस्सजोणियणपुंगा' मनुष्ययोनिकनपुंसकाः, तथा च नारकतिर्यग्मनुष्यभेदेन नपुंसका स्त्रयो भवन्तीति भावः । तेषु त्रिविधनपुसकेषु नारकनपुंसकभेदान् निरूपयितुं प्रश्नयन्नाह - ' से किं तं नेरइयणपुंसगा' अथ के ते नैरयिकनपुंसका इति प्रश्नः, उत्तरयति 'णेरइयणपुंसगा सत्तविहा पम्नत्ता' नैरयिकनपुंसका सप्तविधाः सप्तप्रकारकाः प्रज्ञप्ताः कथिता इति । सप्तविधभेदमेव दर्शयति-- ' तं जहा इत्यादि, 'तं जहा ' - तथथा 'रयणप्पभापुढविनेरइयण पुंसगा' रत्नप्रभापृथिवी नै रयिकनपुंसकाः, 'सकरप्पभापुढविनेरइयण पुंसगा' शर्कराप्रभा पृथिवी नैरयिकनपुंसकाः, 'जाव अहे सत्तमढविनेरइयण पुंगा' यात्रदधःसप्तमीपृथिवीनैरयिकनपुंसकाः, यावत्पदेन- बालुका -- पुरुषाधिकार का निरूपण करके अब सूत्रकार नपुसकाधिकार का कथन करते है - 'से किं तं पुंसगा' इत्यादि । - टीकार्थ गौतमने प्रभु से ऐसा पूछा है - " से किं तं पुंसगा” हे भदन्त नपुंसक कितने प्रकार के होते है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं – “पुंसगा तिविहा पन्नत्ता" हे गौतम ! नपुंसक तीन प्रकार के होते है – “तं जहा ” जो इस प्रकार से है – “ नेरयइयनपुंसगा तिरिक्खजोणियणपुंसगा, मणुस्सजोणियणपुंसगा' नैरयिकनपुंसक, तिर्यग्योनिक नपुंसक, और मनुष्य योनिक नपुंसक " से किं तं णेरइयणपुंसगा" हे भदन्त । नैरर्थिक — नपुंसक कितने प्रकार के होते है ? “नेरइयणपुंसगा सत्तविहा पन्नत्ता" गौतम ! नैरयिक नपुंसक सात प्रकार के होते है "तंजहा" जैसे – ' रयणप्पभापुढविनेरइयनपुंसगा सक्करप्पभापुढवीनेरइयनपुंसगा जाव अहे सत्तम पुढविनेरइयन पुंसगा" रत्न प्रभा पृथिवी के नैरयिक नपुंसक्त शर्कराप्रभा पृथिवी के नैरयिक नपुंसक यावत् अधः सप्तम पृथिवीं के नैरयिक પુરૂષાધિકારનું નિરૂપણું કરીને હવે સૂત્રકાર નપુંસકાધિકારનુ કથન કરે "से किं त णपुंसंगा" इत्याहि टीअर्थ - गौतम स्वामी अलुने येवु पूछयु छे -"से किं तं णपुलगा" ભગવન્ નપુંસકા કેટલા પ્રકારના હાય છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ ગૌતમ સ્વામીંને કહે છે - "णपुंसगा तिविहा पण्णत्ता" हे गौतम नपुंसो त्र प्रारना होय छे "तं जहा " ते या प्रमाणे छे. “नेरइयनपु सगा तिरिक्खजोणियणपु सगा, मणुस्सजोणियणपुर सगा" नैरयिङ नपुंसक, तिर्यग्योनि नपुंस ने मनुष्य योनि नपुस४ ' से किं तं णेरइयणपुंसगा” हे भगवन् नै नपुंसो डेंटला अारना होय छे ? " णेइरयणपुंसगा सत्तविहा पण्णत्ता" हे गौतम | नैरयि नपुंसओ सात प्रारना होय छे. "तं जहा" ते सात प्रश मा प्रमाणे छे. 'रयणप्पभापुंढवीनेरइयनपुंसगा सक्कर पभापुढवीने रइयणपुंसगा जाच अहेसत्तमपुढवीनेर इयणपुंसगा” रत्न પ્રભા પૃથ્વીના નૈયિક નપુસક, શર્કરા પ્રભા છે ----
SR No.010388
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages693
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size44 MB
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