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जीवाभिगमसूत्रे
प्रभाषङ्कप्रभाधूमप्रभातमानारकपृथिवीनां सग्रहो भवति तथा च नारकपृथिवीनां सप्तविधत्वात् तदाश्रित्य नारकनपुंसका अपि सप्तप्रकारका भवन्तीति । 'से त्तं नेरइयणपुंसगा' ते एते — उपर्युक्ता नारनपुंसका निरूपिता इति ॥
तिर्यग्योनिकनपुंसकान् निरूपयितुं प्रश्नयन्नाह - ' से किं तं तिरिक्खजोणियणपुंसगा' अथ के ते तिर्यग्योनिकनपुसका इति प्रश्नः, उत्तरयति 'तिरिक्खजोणियणपुंसगा पंचविहा पन्नत्ता' तिर्यग्योनिकनपुसकाः पञ्चविधा. पंचप्रकारकाः प्रज्ञप्ताः कथिता इति । पंचविधत्वं दर्शयति ‘तं जहा’ इत्यादि, 'तं जहा ' तद्यथा 'एगिंढियतिरिक्खजोणियणपुंसगा' एकेन्द्रियतिर्यग्योनिकनपुंसका' 'वेइंदियतिरिक्खजोणियणपुंसगा' द्वीन्द्रियतिर्यग्योनिकनपुंसकाः, 'ते इंदियतिरिक्खजोणियण पुंसगा' त्रीन्द्रियतिर्यग्योनिकनपुसका., ' चउरिंदिय - तिरिक्खजोणियण पुंसगा' चतुरिन्द्रियतिर्यग्योनिकनपुसका', 'पंचिदियतिरिक्खजोणिय-णपुंसगा' पंचेन्द्रियतिर्यग्योनिकनपुंसकाः, तथाचैकेन्द्रियद्वीन्द्रियत्रीन्द्रियचतुरिन्द्रियपचेन्द्रियभेदात् नपुंसक यहाँ यावत्पद से वालुका प्रभा, पङ्कप्रभा धूमप्रभा और तमा प्रभा इन पृथिवीयों के नैयिक नपुंसक गृहीत हुए है । " से त्तं नेरइयनपुंसगा" यह नारक नपुंसकों का निरूपण है । तिर्यग्योनिक नपुंसकों का निरूपण इस प्रकार से है—“से किं तं तिरिक्खजोणियनपुंसगा” गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है । हे भदन्त । तिर्यग्योनिकनपुंसक कितने प्रकार के होते हैं। 2 उत्तर में प्रभु कहते है - हे गौतम “तिरि क्खजोणियणपुंसगा” तिर्यग्योनिक नपुंसक पंचविहा, पन्नत्ता' पांच प्रकार के होते है "तं जहा – 'एगिंदियतिरिक्खजोणियणपुंसगा बेइदियतिरिक्खजोणियनपुंसगा' एकेन्द्रिय तिर्यग्योनिकनपुसक, दो इन्द्रिय तिर्यग्योनिक नपुसक, “ते दियतिरिक्खजोणियणपुंसगा' तेइन्द्रियतिर्यग्योनिक नपुंसक "चउरिदितिरिक्खजोणियणपुंसगा" चौडन्द्रियतिर्यग्योनिकनपुसक और "पंचिदियतिरिक्खजोणियणपुंसगा" पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकनपुसक, अब गौतमस्वामी પૃથ્વીના નૈયિક નપુંસક, યાવત્ અધઃ સપ્તમ પૃથ્વીના નૈરયિક નપુ મક અહિયાં યાવત્પદથી વાલુકા પ્રભા, પંક પ્રભા, ધૂમપ્રભા, અને તમ પ્રભા આ પૃથ્વીચેના નાયિક નપુ સ श्रद्धया "सेतं नेरयनपुंसगा” मा प्रभा नारीय नपुसोनु निश्चय है
हवे तिर्यग्योनि नयु सोनु निश्या ४२वामा आवे छे. "से किं तं तिरिक्खजोणियणपुंसगा” गौतम स्वामी अलुने मे पूछ छे --हे भगवन् तिर्यग्योनिः नयु समे डेटा अभरना होय छे ? आ प्रश्नमा उत्तरमा प्रभु गौतम स्वामीने हे छे - 'गोयमा ! हे गौतम! “तिरिक्खजोणियणपुंसगा” तिर्यग्योनि नपुस " पचविहा पण्णत्ता" - पांथ अारना होय छे “तं जहा ” ते पाय अरोमा प्रमाणे छे.- “पर्गिदियतिरिक्खजोणिय
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पुंगा, वेइ दियतिरिक्खजोणियनपुंसगा” मे इन्द्रिय वाणा तिर्यग्योनिङ नपुंसह, मेछन्द्रिय वाजा तिर्यग्योनि नपुंसक "ते इदिति रिक्खजोणियण पुंसगा" त्र छद्रियो वाणी तिर्यग्योनिः नयुस " चउरिदियति रिक्खजोणियणपुंसगा यार छद्रिय वाजा तिर्यग्योनिः नपुंसक भने “पंचिदियतिरिक्खजोणियणपुंसगा" यांय धन्द्रिय वाजा तिर्थ