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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र. १ अजीवाभिगमस्वरूपनिरूपणम् २७ भिन्ना अरूपिणो धर्मास्तिकायादयः ते च ते अजीवाश्चेति अरूप्यजीवा स्तेषामभिगमोऽरूप्यजीवाभिगम इति । सू० ३। अरूपिणोऽजीवा धर्मास्तिकायादयः केवलमागमप्रमाणसवेद्या स्तत्त्वत इति प्रथमतोऽरूप्यजीवाभिगमविषयकमेव प्रश्नसूत्रमाह-से किं तं' इत्यादि 'सेकितं अरूवि अजीवाभिगमे' अथकोऽसौ मरूप्यजीवाभिगम इति प्रश्नः, उत्तरयति-अरूवि अजीवाभिगमे दसविहे पन्नत्ते' अरूप्यजीवाभिगमो दशविधः दशप्रकारकः प्रज्ञप्तः-कथितः तमेव दशविधभेदं दर्शयितुमाह-तं जहा' इत्यादि 'तंजहा' तद्यथा 'धम्मस्थिकाए' धर्मास्तिकायः ‘एवं जहा पप्णवणाए जाव सेत्तं अरूवि अजीवाभिगमे एव यथा प्रज्ञापनायां यावत् सोऽयमरूप्यजीवाजीवाभिगम पुद्गल अजीव रूप होता है । अर्थात् पुद्गलरूप अजीव ही रूप्यजीव है । क्योकि रूप, रस, गन्ध और स्पर्श इन गुणो से युक्त पुद्गलों की ही उपलब्धि होती है। अन्य द्रव्यो की नहीं। पुद्रल से भिन्न जो अरूपी धर्मास्तिकाय आदि हैं, वे मरूपी अजीव है। इनका जो अभिगम है वह अबप्यजीवाभिगम है ॥ सू० ३ ॥ ये मरूपी अजीव धर्मास्तिकायादिक केवल मागम प्रमाण से ही सवेद्य है-अतः सूत्रकार ने अरूप्यजीवाभिगम विषयक ही प्रश्नसूत्र सर्वप्रथम कहा है-इसमें प्रश्न कर्ता ने यही पूछा है 'से किंतं अरूवि अजीवाभिगमे' हे भदन्त । अरूपी अजीवाभिगम क्या है ? अर्थात् अरूपी अजीवाभिगम कितने प्रकार का है ? उत्तर में कहा गया है-'अरूवि अजीवाभिगमे दस विहे पन्नते' अरूपी अजीवाभिगम दा प्रकार का है-तं जहा" जैसे 'धम्मत्थिकाए एवं जहा पण्णवणाए जाव से तं अरूचि अजीवाभिगमे' धर्मास्तिकाय इत्यादि-इस दश प्रकार के अजीवाभिगमका कथन ____ जिस रूप से प्रज्ञापना मे किया गया है ? उसी रूप से यहाँ पर भी यावत् ‘से तं अरूवि अजीवा રૂપ્યજીવ (રૂપી અજીવ) છે, કારણ કે રૂપ, રસ, ગંધ અને સ્પર્શે આ ગુણોથી યુક્ત પુદ્ગલેની જ ઉપલબ્ધિ થાય છે-અન્ય દ્રવ્યોની નહીં. પુદ્ગલથી ભિન્ન એવાં જે ધર્માસ્તિકાય આદિ અરૂપી પદાર્થો છે, તેમને અરૂપી અજીવ કહે છે. તેમને જે અભિગમ છે તેને અરૂપી અજવાભિગમ” કહે છે. સૂ૦ ૩ ! આ ધર્માસ્તિકાય આદિ અરૂપી અજીને અનુગ આગમપ્રમાણ વડે જ થઈ શકે છે. તેથી સૂત્રકારે અરૂપી અછવાભિગમ વિષયક પ્રશ્ન સૂત્રનું સૌથી પહેલાં પ્રતિપાદન કર્યું छे मा विषयने अनुसक्षीने मेवे प्रश्न ५७पामा मा०ये। छ ?-"से कि त अरूवि अजीवाभिगमे ?" भगवन् । २५३पी मभिगमनु स्व३५ छ ? मेरो तना કેટલા પ્રકાર કહ્યા છે? ___त्त२-"अरूवि अजीवाभिगमे दसविहे पन्नत्ते-तं जहा" २०२०पी निगम इस प्रा२ने ४ह्यो छ रे । नाथे प्रभारी छ-"धम्मत्थिकाए, एवं जहा पण्णवणाए जाव से तं अरूवि अजीवाभिगमे" यास्तिय साहस प्रा२॥ २५३पी मानिशमन प्रज्ञापनासूत्रमा २४थन ४२वामां आव्युं छे, मे ४थन मडी ५९५ ‘से तं अरूवि
SR No.010388
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages693
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size44 MB
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