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________________ ४२८ जीवाभिगमस कालओ केवच्चिरं होई' देवत्री इति इत्येवं रूपेण कालतः कियच्चिरमवस्थानं भवतीति प्रश्नः, देवस्त्रीणां तथाभवस्वभावतया कायस्थितेरसंभवादाह-'जच्चेव भवट्टिई सच्चेव संचिटणा भाणियव्या' यैव भवस्थितिः सैव संस्थितिर्भणितव्या, यैव पूर्व सामान्यतो विशेषतश्च भवस्थितिः कथिता तदेवावस्थान वक्तव्यम् । सामान्यतो देवीनां स्थितिः जघन्ये न दशवर्षसहस्राणि उत्कपतः पश्चपञ्चाशत् पल्योपमानि विशेषतो देवीनां स्थितिस्तु--स्थितिद्वारे प्रत्येकं यासां यासां देवीनां यावती भवस्थिति रुक्ता तत्तत्प्रमाणेन तासा तासां देवीनां देवीत्वावस्थानं भावनीयमिति ।।स० ४॥ अब देवस्त्री के सम्बन्ध में जो वक्तव्यता है उसे सूत्रकार प्रकट करते हैं-इसमें गौतम ने प्रमु से ऐसा पूछा है-"देवित्थीणं भंते ? देवित्थिति कालो केवच्चिरं होइ' हे भदन्त ! देवियों का देवत्री रूप से रहने का अवस्थान काल कितना है ? इसके उत्तर में - प्रभु कहते हैं"जच्चेव हिई सच्चेव संचिटणा भाणियब्वा" हे गौतम ! तथाभवस्वभाव होने के कारण देवियों में कायस्थिति नहीं होती है, इसलिये , जो पूर्व में सामान्य और विशेष को लेकर भवस्थिति कही गई है वही इन का अवस्थान काल जानना चाहिए, इस प्रकार जघन्य से दश हजार वर्षका और उत्कृष्ट से पचपन पल्योपमका इनका सामान्य से अवस्थान काल है ऐसा जानना चाहिए तथा विशेष रूप से देवियों की स्थिति कितनी है ? यह जानना हो तो इसस्थिति द्वार से जानना चाहिये अर्थात्-जिन देवियो में प्रत्येक देवी की जितनी भवस्थिति कहो गई है उस उस प्रमाण से उन उन देवियों का अवस्थान काल समझना चाहिए। सूत्र ॥ ४ ॥ - - - આ રીતે સામાન્ય અને વિશેષપણાથી મનુષ્ય સ્ત્રીના સંબંધમાં કથન કરવામાં આવ્યું છે. હવે દેવીઓના સંબંધમાં જે વક્તવ્યતા છે તેને સૂત્રકાર પ્રકટ કરે છેઆમાં गीतभस्वामी प्रभुने मे पूछयु छ -'देवित्थी णं भंते ! देवित्थित्ति कालो केवच्चिरं होई" मगवन् वियानु हेवनी स्त्री पाथी २वाना अस्थाना छ १ मा प्रश्न उत्तरमा प्रभु गौतमस्वामीन ४ छ-"जच्चेव भवहिई सच्चेव संधिदृणा भाणियवा" है गौतम! तेवा प्रार। म स्वभाव सावाना २२ क्यिामा १५ સ્થિતિ હોતી નથી. તેથી પહેલાં જે સામાન્ય અને વિશેષ પ્રકારથી ભવસ્થિતિ કહી છે, એ જ તેમને અવસ્થાનકાળ સમજો. આ રીતે જઘન્યથી દશ હજારવર્ષને અને ઉત્કૃષ્ટથી ૫૫ પંચાવન પલ્યોપમને તેમને સામાન્ય અવસ્થાનકાળ છે, તેમ સમજી લેવું તથા વિશેષરૂપ થી દેવિયની સ્થિતિ કેટલી છે? તે સમજવું હોય તે તે સ્થિતિદ્વારથી સમજી લેવું. અર્થાત–જે જે વિના કથનમાં દરેક દેવીની જેટલી ભવસ્થિતિ કહી છે, તે તે પ્રમાણુથી તે તે દેવિયને અવસ્થાન કાળ સમજી લેવો સૂકો
SR No.010388
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages693
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size44 MB
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