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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्रति० १ गर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्यनिरूपणम् ३३१ सिझंति जाव अंतं करेंति' अस्त्येकके सिध्यन्ति यावदन्तं कुर्वन्ति, मत्र यावत्पदेन 'वुझंतिमुच्चंति परिनियायति सव्वदुक्खाणं' बुध्यन्ते मुच्यन्ते परिनिर्वान्ति सर्वदुःखानामित्यन्तस्य ग्रहणं भवति, तथा च सरत्येकके सिद्धयन्ति-परिनिष्ठितार्था भवन्ति सिद्धि प्राप्नुवन्तीत्यर्थः बुध्यन्ते-निरावरणत्वेन समस्तपदार्थजातबोधयुक्ता भवन्ति, मुच्यन्ते-अष्टविधकर्मभि मुक्ता भवन्ति । परिनिर्वान्ति-कर्मसन्तापापगमेन शीतलीभूता भवन्ति, अतएव सर्वदुःखानां शरीरमानसभेदानामन्तं-विनाशं कुर्वन्ति इति । गत्यागतिद्वारे- 'ते णं भंते ! जीवा' ते खलु भदन्त ! जीवाः- गर्भजमनुष्याः 'कइ गइया कइ आगइया पन्नत्ता' कतिगतिकाः कत्यागतिकाः प्रज्ञप्ताः-कथिता इति प्रश्नः, भग- वानाह-गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'पंच गइया चउरागइया' इमे मनुष्याः कर सकते हैं । "अत्थेगइया सिझंति जाच अंत करेंति" कितनेक मनुष्य ऐसे भी होते है जो उसी भव से सिद्ध होजाते हैं यावत् समस्त दुःखों का अन्त कर देते हैं यहां यावत्पद से "वुशंति, मुच्चंति, परिनिव्यायंति, सव्वदुक्खाणं" इन पदों का संग्रह हुमा है । इन पदों का अर्थ ऐसा है कि कितनेक गर्भज मनुष्य ऐसे होते है कि जो उसी भव से "सिझंति" सिद्धिको प्राप्त करलेते हैं अर्थात् कृत-कृत्य हो जाते है "बुद्धयन्ते" निरावरण होनेसे केवलालोक से समस्त . पदार्थों को जानते हैं ,मुच्यन्ते" ज्ञानावरणीयादिसमस्त कर्मों से छूट जाते हैं "परिनिर्वान्ति" कग्नि के संताप से रहित होकर शीतलीभूत हो जाते हैं । अतएव थे शारीरिक एवं मानसिक समस्त दुःखों का अन्त-विनाश कर देते हैं। गत्यागतिद्वार में-ये गर्भज मनुव्य कैसे होते है-इस बात को गौतम ने प्रभु से "ते णं भंते" ! जीवा कइगइया कई आगइया पन्नत्ता" इस स्त्र द्वारा-पूछा है-हे भदन्त । ये गर्भज मनुष्य कति "अत्थेगहया सिझंति जाव अंतं करेंति'मा मनुष्या' या प हाय छ । એજ ભવમાં સિદ્ધ થઈ જાય છે. યાવત્ સમસ્ત દુઃખને અંત-નાશ કરી દે છે. અહિયાં या१५४था "वुज्झति, मुच्चंति, परिनिव्वायति, सव्वदुःखाण" मा५होना सब थयो छे. આ પદને અર્થ એ છે કે--કેટલાક મનુષ્ય એવા હોય છે કે–જેઓ આજ ભવમાં सिझंति सिद्धिने पास से छे मात कृतकृत्य 25 नय छ. "बुध्यन्ते" निशवराय पाथी साथी सघ पार्थ ने तमीले छ, "मुच्यन्ते" ज्ञानावरणीय विगैरे सघा भाथी धूटिनय छे. "परिनिर्वान्ति" भ३५ी मसिना सतपथी २डितधन शीतलीभूत થઈ જાય છે અએવ શારીરિક અને માનસિક સમસ્ત૬ ખેને અંત-નાશ કરી દે છે. सत्याािभां-मान मनुष्य पाय छ १ से वात गौतमस्वामी प्रसुन "ते ण भंते जोवा कइगइया का आगइया पन्नत्ता" मा सूत्रद्वारा पूछेस. गौतभस्वामी पूछे छे हैહે ભગવદ્ આ ગર્ભજ મનુષ્ય “કતિગતિક એટલે કે કેટલી ગતિમાં જવાવાળા અને કતિ આગતિક એટલે કે કેટલી ગતિમાંથી આવવાવાળા હોય છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ
SR No.010388
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages693
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size44 MB
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