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________________ मवाभिगमसूत्रे ३३० द्वीप का संख्यातवर्षायुष्क वर्जेभ्यो मनुष्येभ्य एव भवतीति । 'देवेहिं सव्वेहिं' देवेभ्यः सर्वेभ्यः, यदि देवेभ्य उपपातो भवति मनुष्याणां तदा सर्वदेवेभ्योऽनुत्तरोपपातिक देवपर्यन्तेभ्यो भवतीव्युपपातद्वारम् ॥ - स्थितिद्वारे – 'ठिई जहन्नेणं अंतो मुहुत्तं' मनुष्याणां स्थितिः- आयुष्यकालो जघ - न्येन अन्तर्मुहर्तप्रमाणा भवति, 'उक्कोसेणं तिन्नि पनिओवमाई' उत्कर्षेण त्रीणि पल्योपमानि—त्रिपल्योपमप्रमाणा स्थिति भवतीति स्थितिद्वारम् || 'दुविधा वि मरंति' समुद्घातमधिकृत्य मरणचिन्तायां मारणान्तिक् समुद्घातेन समवहता अपि म्रियन्ते व्यसमवहता अपि म्रियन्ते । उद्वर्तनाद्वारे - 'उच्चट्टित्ता नेरइयादिसु जाव अणुत्तरोर्ववाइएस' अनन्तरमुद्वृत्य नैरयिकादिषु, यावदनुत्तरोपपातिकेषु । इत उद्धृत्य सर्वेषु नैरयिकेषु सर्वेषु तिर्यग्योनि-. केषु सर्वेषु मनुष्येषु सर्वेषु देवेषु अनुत्तरोपपातिकपर्यवसानेषु गच्छन्तीत्यर्थः, 'अत्येगइया इनका उत्पाद होता है । "देवेहि सव्वेहिं" यदि देवों में से इनका उत्पाद होता है तो समस्त देवों में से इनका उत्पाद होता है स्थितिद्वार में इन गर्भन मनुष्यों की स्थिति "जद्दन्ने अतो मुहुत्तं उक्को सेणं तिन्नि पळिओवमाई” जघन्य से एक अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट से तीन पल्योपम की है समवहत द्वार से ये गर्भज मनुष्य "दुविहा वि मरंति” मारणान्तिक समुद्घात से समवहत होकर भी मरते हैं, और मारणान्तिक समुदुधात से नहीं समवहत होकर भी मरते हैं । उद्वर्त्तन निकलना द्वार में- ये गर्भज मनुष्य " उच्चट्टित्ता नेरइयादि जात्र अणुत्तरोववाइएस " जब अपनी पर्याय को छोड़कर परगति में जन्म धारण करते है तो ये नरकों में भी जन्म धारण कर सकते हैं समस्त तिर्यग्योनिकों में भी जन्म धारण कर सकते हैं, सर्व मनुष्यो में भी जन्म धारण कर सकते हैं और अनुत्तरोपपात्तिक के समस्तदेवो में भी जन्म धारण 'देवेहि सव्वेहि" ले तेभनी उत्पत्ति हेवाभाथी थाय छे, तो सघणा हेवाभांथी तेथोनी उत्पत्ति थाय छे. स्थितिद्वारमां - मा गर्लन मनुष्यनी स्थिति “नहण्णेणं अंतो मुद्दत्तं उक्को सेणं तिन्नि पलिओ माइ धन्यथी मे अतर्भुहूर्तनी छे भने उत्कृष्टथी ऋणु पयेापभनी छे सभवहुतद्वारमा - आा गर्लन मनुष्य “दुविधा वि मरंति" भारशान्तिः समुद्घातथी સમવદ્યુત થઇને એટલેકે આઘાત પ્રાપ્ત કરીને પણ મરે છે, અને મારણાન્તિક સમુદ્ઘાતથી સમવતથયાવિના એટલેકે આધાત પ્રાપ્ત કવિના પણ મરે છે, ઉદ્દતનદ્વારમાં—આ ગભજ भनुष्य " उवट्टित्ता नेरहपसु जाव अणुत्तरोववाहपसु" न्यारे पोतानी पर्यायने छोडीने अन्य ગતિમાં જન્મધારણ કરે છે, તે તેઓ નારકામાં પણ જન્મધારણ કરે છે, સઘળા તિય ગ્યા નિકામાં પણ જન્મધારણ કરી શકે છે. સર્વ મનુષ્યમાં પણ જન્મ ધારણ કરી શકે છે.
SR No.010388
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages693
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size44 MB
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