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जीवामिगमसूत्र इत्यादि, 'तं जहा' तद्यथा-'समचउरंससंठिया' समचतुरस्रसंस्थिताः, समाः यथावस्थित. प्रमाणाऽविसवादिन्यश्चतस्रोऽन्नयश्चतुर्दिगविभागोपलक्षिताः चतुष्कोणशरीरावयवरूपाः यत्र तत् समचतुरनं संस्थानं प्रथमं तेन संस्थिताः । 'णग्गोधपरिमंडळसंठिया' न्यग्रोधपरिमण्डल. संस्थिताः न्यग्रोधवत् परिमण्डलं यस्य तन्न्यग्रोधपरिमण्डलम् , यथा न्यग्रोधवृक्ष उपरि सम्पूर्णप्रमाणोऽधस्तु अल्पप्रमाणः, तथा यत् संस्थानं नाभेरुपरि संपूर्ण नामेरधस्तु न संपूर्ण अपितु हीन तत् न्यग्रोधपरिमण्डलं द्वितीयं संस्थानं तेन संस्थिताः । 'साइसंठिया' सादिसंस्थिताः, मादिरुत्सेधाख्यो नामेरधस्तनो देहभागः, आदिना-नामेरधस्तनदेहभागेन यथोक्तप्रमाणलक्षणेन सह वर्तते इति सादिः उत्सेधबहुलमित्यर्थः,
अत्र यद्यपि सर्वमेव शरीरमादिना सह वर्तते एव तथापि सादित्वविशेषणस्य सार्थक्यान्यथाऽनुपपत्या विलक्षण एव कश्चित् प्रमाणलक्षणोपपन्नमादिरिह गृह्यते, अतएवोत्सेघबहुलमिति संस्थान होते हैं। जैसे -"समच उरंससंठिया" समचतुन संस्थान वाले १, "नग्गोधपरिमंडलसंठिया" न्यग्रोध परिमण्डलसंस्थान वाले २, "साइसंठिया" सादि संस्थान वाले ३ "खुज्जसंठिया" कुब्ज संस्थान वाले ४ "वामण संठिया" वामन संस्थान वाले ५ "और हुंड संठिया" हुण्डक संस्थान वाले होते हैं, ६ जिस-संस्थान में शारीरिक अवयव चतुष्कोण यथावस्थित प्रमाण के अनुसार होते हैं वह समचतुरस्र संस्थान है।
जिस संस्थान में शरीर का आकार न्यग्रोध वट वृक्ष के जैसे ऊपर में तो सम्पूर्ण प्रमाणोपेत होता है और नीचे में हीन प्रमाण वाला होता है ऐसा वह संस्थान न्यग्रोध परिमण्डल संस्थान है, इस संस्थान में नाभि से ऊपर तक तो अवयव सम्पूर्ण आकार वाले होते हैं और नीचे के अवयव तीन होते हैं ।२। नाभि से नीचे का जो भाग है वह आदि है। इस नाभि से नीचे के देह भाग रूप आदि से जो शरीर का आकार युक्त होता है वह सादि संस्थान है । यद्यपि विचार किया जाय तो-समस्त शरीर ही आदि से युक्त है । अतः सस्थानवाणा डाय छे. सम-समचउरंससंठिया" सभयतुरस सस्थानवाट १, "नग्गोधपरिमंडलसंठिया" न्याय परिभस संस्थानवाणा २, "साइसठिया" साह सस्थाना 3, "खुज्जसंठिया" Tv१ सस्थानवाणी ४, "वामण संठिया" वामन सस्थाना॥ , गने "हुंडसंठिया" है स स्थानवाणा है, हाय छे. संस्थानमा શરીરના અવયવે ચતુષ્કોણ યથાવસ્થિત પ્રમાણ અનુસાર હોય છે, “તે સમચતુર સંસ્થાન કહેવાય છે ૧ જે સંસ્થાનમાં શરીરને આકાર ન્યગ્રોધ કહેતાં વડના ઝાડના જે ઉપર તે સંપૂર્ણ પ્રમાણવાળા હોય અને નીચે હીન-ઓછા પ્રમાણુવાળ હોય તેવા સંસ્થાનને અન્યોધપરિમંડલ સંસ્થાન કહેવાય છે. આ સંસ્થાનમાં દુટીથી ઉપર સુધીના અવયતે સંપૂર્ણ આકારવાળા હોય છે, અને નીચેના અવય હીન-ન્યૂન હોય છે. ૨ નાભીથી નીચેનો જે ભાગ છે, તે આદિ છે. આ નાભીથી નીચેના દેહ ભાગરૂપે આદિથી જે શરીરને આકાર યુક્ત હોય છે, તે સાદિ સંસ્થાન છે, જો કે વિચાર કરવામાં આવે તે