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________________ 'जीव और कर्म विचार | कर्मोके भेद व स्वरूप कर्मके मुख्य तो दो भेद हैं। घातिया कर्म और मघांतिया फर्म 'जो कर्म जीवके स्वरूप ( जीवके गुणोंका ) घात करे 1 *}' 1 · उसको घातिया कर्म कहते हैं। घातिया कर्मके मुख्य तो तीन भेद है । ज्ञानावरण १, दर्शनावरण २, और मोहनी । परंतु का अनुजीवीगुण वीर्यको अन्तराय कर्म प्रच्छादित करता है इसलिये अतरायको भी घातियाकर्म कहते हैं । भवशेष चार वेदनी - आयु- नाम और गोत्रकर्मको अघातिया कर्म कहते हैं । , t इनसे मात्माका गुण घात नहीं होता है । अरहंत अवस्था इनके सद्भावमें प्रकट होजाती हैं तो भी अमूर्तत्व गुणादिक कितने ही शरीर के अभाव से प्रकट होनेवाले गुण अवश्य ही माच्छादित हो रहे हैं। पूर्ण स्वतंत्रता अघातिया कर्मोंके नाश होनेपरही जीवको प्रकट होती है। इसलिये घातिया और अघातिया कर्मके भेद अवश्य P हो जान लेना चाहिये । कर्मके स्वरूप जानने के लिये आचार्योंने कमके चार भेद बत न लाये हैं । प्रकृति- स्थिति अनुभाग और प्रदेश ४ | प्रकृतिका अर्थ स्वाभाव होता है। जो जो धर्म प्रतिफलस्वरूप वस्तुमें रहते हैं। वही वस्तुकी प्रकृति कहलाती है । जैसे नीत्रकी, प्रकृति कटुक होती है। नीवका स्वाद कटुक है ।, की प्रकृति मधुर होती है । इक्षुका स्वाद मधुर होता है । नीबूफी प्रकृति सट्टी है। यद्यपि नीबू नीव और तीनोंमें पानी पक्ष
SR No.010387
Book TitleJiva aur Karmvichar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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