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जीव और कम-विवार। [८ क्षायिक सम्यग्दृष्टि हो चाहे द्वितीयोपशम सम्बग्दृष्टि हो, जो कमों को सपनो शिद्धिसे उपशमना जाता है ति उनका क्षय करनेने असमर्थ है उसे उपशम श्रेणीयाला अपूर्वपरणगुणस्थान बहते हैं । इस गुणस्थानमें जीव नोनकरण ( परिणाम विशुद्धि) धारण करता है जिससे मात्मीयविशेष विशुद्धिसे स्थितिखंडन अनुभागखंडन आदि करने में समर्थ होता है।
१ सनिवृत्तकरण-गुणस्थानमें एक ऐसा पिशुद्धभाव उत्पन्न दोजाता है जो उस गुणस्थानवी सत्र जीयोंके समान होता है , इस नौवं गुणस्थान भी उपशम या क्षपण किया जाता है। . १०-दश गुणस्थान केवल सूश्मनोभका उदय मात्र रहजाता है इसलिये उसका नाम सूक्ष्म लोम बहा गया है। इसमें उपशम भी करता है यदि क्षपर श्रेणी माढे तो सर्वमोहनीयका इसी गुणस्थानके अंतमें क्षय करदेता है।
.. ११ टपशांतमोह-यह गुणस्थान उपशमश्रेणी माढ़नेवालेकी स्पेशाले कहा गया है। इस गुणस्थानमें चारित्रमोहको जागृति होजाती है । इसलिये यहांसे जीव परिणामोंकी अपेक्षा गिर जाता है और कम २ से दशवे नौवें आदि गुणस्थानोंको प्राप्त होजाता है यदि मरण होजाय तो एक्दम चोथे गुणस्थानमें पहुंच जाता है। - १२क्षीणमोह-सगुणस्थानमे-मोहका सर्वथा विनाश होजानेके पश्चात ज्ञानावर्ण आदि प्रकृतियोंका विनाश होता है।-बाना. चरणकी पांच, अंतरायकी पान और दर्शनापरणकी चार ऐसे २४ प्रकृतियोंका सर्वथा नाश इसी गुणस्थानमें जीव करदेता है।