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________________ - जीव और कर्म विचार। [८७ चौदह भेद है। इसलिये अनंतानंत समस्त संसारी जीवोंका अंतर्भाव चौदह गुणस्थानों में होजाता है। गुणस्थानोंका संक्षिप्त स्वरूप यह है (१)मध्यात्वगुणस्थान, २ सासादनगुणस्थान ३ मिश्रगुणस्थान, ४ अविरत सम्यक्त्वगुणस्थान, ५ देशविरत ६ प्रमत्तगुणस्यान ७ अप्रमत्त गुणस्थान ८ अपूर्वकरण अनिव्रत. परण १० सूक्ष्मसापराय ११ उपशांतमोह १२ क्षीणमोह १३ स. योग केवलो १४ अयोगकेवली। १ मिथ्यात्वगुणस्थान-दर्शनमोहके उदयसे जिसका अतत्वप्रधान हो या विपरीत ध्रधान हो उसको मिथ्यात्व गुणस्थान महते है। - २लासादनगुणस्थान-यानंतानुबंधी पायमेंसे (क्रोधमान माया व लोम) विसी फपायके उदयले सम्यक्त्वका तो नाश कर दिया हो परन्तु मिथ्यात्वगुणस्थानतक नहीं पहुवा हो ऐसे समय जो जीवोंके मांव होते है उसको सासादनगुणस्थान कहते है। मिश्रगुणस्थान-सम्यत्व मिथ्यात्व , नामक दर्शनमोहनी कमकी प्रकृतिके उदयसे जीवोंके परिणाम न तो तत्व-ध्रधान रूप हों और न मतत्वश्रद्धान संप हों किंतु दही गुणके समान मिश्रित हों। मिथ्यामविकप यह गुणस्थान होता है.) उसको मिश्रगुणगान कहते हैं। - . . ' ' : -४ अविरतगुणम्यान-अतंतानुबंधी कपाय-क्रोध मान माया लोमे और मिथ्यात्वं दर्शन-मोहनीवर्गको-मिथ्यात्व सम्यगनिध्यारस तथा सम्यक्त्वं प्रकृतिक क्षय क्षयोपशम और उपाशमं होनेसे जी
SR No.010387
Book TitleJiva aur Karmvichar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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