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जीव और धर्म विचार ।
[ ८३ तानंत जीवराशिका संक्षेपसे अंतर्भाव इस रूपमें किया है । अर्थात् अंतरंगभावों की अपेक्षा जीवके गुणस्थान कहे जाते हैं और क्मों से होनेवाली जीवकी शरीरादि विशिष्ट स्थूल भवस्थाको मार्गणा कहते हैं, संसारी सबजीव इन्हींमें गर्मित होते हैं । विशेष-कुल और जानिके भेदोंसे जीवके असंख्य भेद होते हैं ।
जीवों के उत्पत्ति स्थान सवित्त १, अवित्त २, सवित्तावित्त ३, शीत ४, उष्ण ५, शीतोष्ण ६, संवृत्त 9, विवृत्त ८, वृत्तविवृत ६ इसप्रकार न भेद है । परन्तु उत्तर भेद असंख्य हैं ।
जीवके जन्म, संमूर्छन, गर्भ, उत्पाद इसप्रकार तीन प्रक र है । संमूर्छन जन्म यह है कि माता पिताके रजवीजे विना निमित्त संयोग मिलने पर जीवों का जन्म हो जाना हो जैसे केंचुआ बिच्छू ज्यू खटमल वृक्ष आदि जीवोंका जन्म वाह्य साधनो के निमित्तसे होता है ।
जो माता पिनाके रजवीर्यसे जन्म दो वह गर्भ कहलाता है जैसे पुरुष स्त्री घोड़ा गौ बन्दर आदि - नीवोंका जन्म गर्म जन्म है ।
गर्म साधारण तीन भेद है। जरायुज, मडज, पोत, जो जीव अपने जन्म के समय अपने शरीर के साथ एक थैली (कोथरी) सहित जन्म ग्रहण करे उसको जरायुज जन्म कहते हैं । जैसे मनुष्यका जन्म गौका जन्म यह जन्म जरायुज है । जो अंडामें उत्पन्न हो वह अंडज जन्म है जैसे कबूतरका जन्म, मयूरका जन्म।"
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