________________
जीव और कर्म-विचार
--
-
होता है, विद्याधर होता है, चक्रवर्ती, तीर्थकर, मआदि उत्तम पदको प्राप्त होता है। पोके फलसे ही पशु, पक्षी, जलचर थलचर होता है, एकेन्द्रिय होता है, द्वीन्द्रिय होता है तीन इन्द्रिय होता है चार इन्दिय होता है, पचेन्द्रिय होता है। कभी कमी इन्द्रियोंकी पूर्णता प्राप्त नहीं होती है। गर्भ में कभी कमी मरण होता है।
इस प्रकार फोसे जीवोंको अनेक प्रकारकी उपाधि प्राप्त होता है । जीवोंके मेद भी कमों की अपेक्षासे है। इस स्थावर भेद से जीवोंके दो भेद हैं, चारगतिकी अपेक्षा जीवोंके चार भेद हैंनरकजीव, तिर्यंचजीव, मनुष्यजीव, देवजीव । इन्द्रियके भेदसे जीवोंक पाव भेद है। प्रल और पाच स्थावर भेदसे जीवके छह मेद है। पृथ्वीकाय, अपकाय, तेजकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय दो इन्द्रिय, तीनइन्द्रिय, चार इन्द्रिय, पंचेन्द्रिय इसप्रकार नौवके नव भेद है। रथूलयनस्पति, सूक्ष्मयनस्पतिकाय, सूक्ष्मपृथ्वीकाय, यादर पृथ्वीफाय, सक्ष्मअपकार, वादरमपकाय, सक्षमतेजकाय, पादर तेजकाय, सूक्ष्मवायुकाय, वादरवायुकाय, विकलत्रय, संतो पंचे. न्द्रिय, असंही पचेन्द्रियजीव इसकार तेरह जीवके भेद है। चौदह जीव समासके भेदसे जीवोंके चौदह भेद हैं।
वनस्पतिमायके साधारण और प्रत्येक ऐसे दो भेद है। साधारण जीव दो प्रकारसे होते हैं। एक जीवके शरीर में अनेक जीवोंका आहार, जन्म-मरण आदि क्रिया एक साथ हो तो उसको साधारण जीव कहते हैं। वनस्पतिकायमें निगोदरीशि रहती है, एफ निगोदिया जीवके शरीरमें सिद्धराशिसे अनंतवें भाग और