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८०] जीव और कर्म-विचारः । कोंके फलसे इन्द्रिय शरीर आयु और श्वासोश्वास कार्य होते ह, काके फलसे ही फोघ-मान-माया-लोम होते हैं कौके फलसे ही आहार मय मेथुन और परिग्रह संज्ञां प्राप्त होती है। फर्मोके प्रतिफलसे गृह-पुत्र-धन-संपत्तिका समागम होता है फोके फलसे ही. स्वर्ग नरक आदि कुगति सुगति प्राप्त होती है। फोंके फलसे हो जीवोंको संसारका सुख दुःख प्राप्त होता है। ""फोके फलसे ही शरीरफी' रचना होती हैं। ऊद, हाथी घोड़ा, बकरी, सिंह, सर्प, वृक्ष, मनुष्य आदि पर्याय प्राप्त होती है। फोसे ही भंगी चमार खटीक, ढेड, आदि नीच जातिमें जीवं उत्पन्न होता है। कोके फलसे ही क्षत्रियः ब्राह्मण चैश्य आदि उत्तम वर्ण और जातिमें उत्पन्न होते हैं। जिसमें श्री जिनेन्द्र की दीक्षा प्राप्त हो सकती है। .
.. । कर्मोंके फलसे ही रोगी, शोकी, पीडित, संबलेशी, दरिद्र, पंगु, काणा, अन्धा, वधिर, कुवडा, कोढी, गलित्त शरीर, आदि उपाधिको प्राप्त होता है। कर्मोके फलसे सुन्दर-स्वरूपवान, नयनोको प्रिय होता है । सुन्दर वचनोंका प्रतिपादक होता है। . ___ कोके फलसेही स्त्री होता है पुरुष होता है नपुंसक होता है। कोंके फलसे ही शतवर्घजीवी होता है और पोंके फलसे ही स्वल्पायुवाला होता है-एक श्वासोश्वासमें १८ बार जन्म-मरण प्रहण करनेबाला होता है। ___ कर्मों के फलसे राजा होता है, श्रीमान् होता है, वुद्धिशाली होता है, लोकपूज्य होता है, कीर्तिमान होता है, देव होता है, इन्द्र