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जीव और धर्म-विवार।
धन सपन्न-नीरोग-एक समान सुन्दर बनाना चाहिये परन्तु एक जीव रोगी-एक जीव दरिद्र-एक जीव विद्वान्-एक जीव सुखी, एक समृद्धिशालो-एक हाथो और एक मनुष्य इस प्रकार जीव क्यों उत्पन्न किये ? जो ऐसा कहा जाय कि ईश्वरने एकसमान ही सव जीव निर्माक्ति किये परन्तु यपने अपने कार्योंसे ऐसे विभिन्न रूप हो गये तो कर्म बलयान हुआ और ईश्वरको सर्वशक्तिमान मानना नहीं हो सकेगा। जो ईश्वरको सर्वशक्तिमान न माने तो एक परमात्मासे समस्त सृष्टि नहीं हो सकी?
यदि ईश्वर सर्वशक्तिमान है तो वेश्या चोर क्यों बनाये। जिससे जनताको पापाचरण करना पड़े ?
सृष्टि धनानेके प्रथम संसारमें कुछ पदार्थ थे या नहीं जो पदार्थ थे तो ईश्वरने क्या यनाया? जो पदार्थ नहीं थे तो बिना पदार्थों के सृष्टि कैसे बनाई ? आकाश-परमाणु यादि पदार्थ सष्टिके प्रथम माननेसे सर्वशक्तिमानका लोप होता है।।
सटिके प्रथम ईश्वर था या नहीं ? जो था ईश्वरको किसने पनाया ? जो स्वयं मानें तो समस्त सृष्टिको स्वयं माननेमें क्या हानि? जो ईश्वरको किसी दूसरेने बनाया तो उसको किसने बनाया इस प्रकार अनवस्था दूपण प्राप्त होता है।
ईश्वरने सृष्टि क्यों बनाई ? लीलासे ? जो लीलासे सृष्टि बनाई -मानी जाय तो लीला तो अन्नानी प्राणियोंमें होती है और लोला करनेका कारण हो क्या ? जो इच्छा मार्ने ? ईश्वरको सृष्टि कर. नेको इच्छा हुई तो इच्छो राग-द्वपके विना नहीं हो सकी है। ईश्वरको रागी द्वे पो माननेसे अनेक दूषण मा,धमकेंगे। . -