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जीव और कर्म-विचार।
हो सका ? क्योंकि व्यापक सर्व क्षेत्रमें व्याप्त है उससे कोई भी क्षेत्र अवशेष नहीं रहता है जिसमें किया हो सके। क्रियाके बिना सृष्टिकी रचना नहीं हो सकी है। जो ईश्वरको व्यापक नहीं माना जाय तो सिद्धांतका घात होता है ख वचन विरोध होता है। और ईश्वरको व्यापक माने विना सर्वक्षेत्रकी क्रियायें नहीं हो सकेगी।
जो ईश्वरको नित्य माना जाय तो नित्य वस्तुमें क्रियाका अभाव होनेसे आकाशके समान ईश्वरको निष्क्रिय मानना पडेगा। निष्क्रिय वस्तुसे सृष्टि उत्पन्न नहीं हो सकी है।
जो ईश्वरको अनित्य मान लिया जाय तो सर्वकालको सर्व क्रिया सर्व कालमें नहीं हो सकेगी?
जो ईश्वरको निरंजन [शरीर रहित ] माना जाय तो शरीर -रहित ईश्वरसे शरीरसहित कार्य उत्पन्न नहीं हो सकेंगे। क्योंकि अमूर्तीक पदार्थसे मृर्तीक पदाधे कभी भी उत्पन्न नहीं हो सका है। जो अमूर्तीकस मृतक पदार्थ उत्पन्न हुआ मान लिया जाय तो अमूर्तिक आकाशसे मूर्तीक पदार्थ उत्पन्न होने लगेंगे। मसत्. से सत् पदार्थकी उत्पति हो जायगी। __ जो ईश्वरको शरीर सहित मान लिया जाय तो ईश्वर सबको दीखना चाहिये और उसको निरंजन नहीं कहना चाहिये?
जो ईश्वरको निराकार मान लिया जाय तो निराकारसे साकार वस्तु उत्पन नहीं हो सकी है ? और ईश्वरको लाकार माननेसे प्रत्यक्ष दर्शन ईश्वरको होना चाहिये।
जो ईश्वरको सर्वशक्ति मान लिया जाय तो सर्वजीवोंको सुखी