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________________ ७४ जीव और कर्म-विचार। रूपसे रहता है या तारतम्य अवस्थास? समस्त जीवात्माओंकी शक्ति गुण प्रदेशप्रवय और द्रव्य एक समान है या न्यूनाधिक हे १ समस्त संसारी जीवात्माओंको अपने २ कर्तव्योंसा फल प्राप्त है या नहीं ? जो समस्त जीवोंमें परमात्मा एक समान ( एक परिमाण-तोल और एक शकिकी एक समानताले) रहता है तो समस्त जीव एक समान होने चाहिये ? यदि तारतम्य अवस्थासे परमात्मा रहता है तो परमात्मामें रागद्वप मानना पडेगा। जो समस्त जीवात्माकी शक्ति गुण प्रदेशप्रचय और समस्त जीवोंका द्रव्य एक समान है नो जीवात्माओंमें भेदभाव क्ष्यों दृष्टिगोचर हो रहा है। जब सबमें परमात्मा एकसमान और जीवद्रव्य एकसमान है तब भेदभाव क्यों ? जो जीवात्मामें एक जीवसे दुसरे सीवकी अपेक्षा शक्ति-गुण-प्रदेश और द्रव्य न्यूनाधिक है तो इसका कारण क्या है ? जो परमात्मा ही इसका कारण मानें तो परमात्मा रागी द्वेषी होगा। जो कर्म इसका कारण माने तो परमात्मासे कर्म वलवान मानने पड़ेंगे। जो समस्त संसारी जीवोंको अपने अपने कर्तव्यका फल प्राप्त होता है ऐसा माने तो समस्त संसारी जीवोंमें । परमात्मा रहनेस कोका फल परमात्माको भोगना पड़ेगा। और जब समस्त जीवोंको अपने कर्तव्योंका फल प्राप्त होता है तो फिर जीवात्मामें परमात्मा माननेकी जरूरत नहीं है । जो जीवोंको अपनेर कर्मोका फल प्राप्त नहीं होता है ऐसा मान लिया जाय तो चोरी करनेवालेको दंड क्यों दिया जाय ? जो समस्त जीवोंमें एक ही परमात्मा है तो वह दंड परमात्माको मिला ऐसा मानो जायगा?
SR No.010387
Book TitleJiva aur Karmvichar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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