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________________ जीप और कर्म विवार । [७१ मानते हैं । पुरुष ( आत्मा) को सर्वथा निर्गुण मानते हैं। परंतु प्रकृति जड है उसे निष्क्रिय भी मानते हैं ऐसी दशा में वह कुछ भी नहीं कर सकी है, और प्रतिफा सबंध होनेपर पुरुपमें यदि कुछ भी विकार नहीं होता है तो फिर ससार और मुक्त जीवमें भेद ही क्या रहेगा? इसलिये साल्पमतका निरूपण संगत नहीं है। क्तिने ही मतवादी जीवात्मा और परमात्माको एक ही मानते हैं। उनका कहना है कि "एकमेव परब्रह्म नेह नानास्ति किंचल।" एकही परमात्मा है अन्य दूसरा कोई नहीं है। यह ब्रह्मातवाद है ब्रह्मको छोडकर और सब कुछ मिथ्या है यहां पर विचारशील विज्ञपुल्योंको विचार करना चाहिये कि समस्न संसारमे एकही परमात्मा है अन्य कोई जीवात्मा नहीं है? समस्त नोवोंमें परमात्मा छायारूप रहता है या तत्त्वरूप जो समस्त संसारी जीवोंमे एकही परमात्मा रहता है जैसे एक चंद्रमाकी छाया समस्त पानीके वर्तनमें पडती है नो समस्त पानीके घर्तनोंमें चंद्रमा छायारूपमें दृष्टिगोचर होता है । अथवा एक मनुष्यका चित्र अनेक दर्पणमें प्रतिविदित होता है। ऐसे ही एक परमात्मा समस्त । संसारी जीवोंमें छाया रूपसे रहता है। तो समस्तसंसारी जीवोंमें एक परमात्माकी छाया माननेसे समस्त जीवोंमें एकरूप क्रिया होगी। समस्त जीवोंमें एकरूप क्रिया माननेसे समस्त व्यवहारका लोप होजायगा। और समस्त प्रकारकी क्रिया एकरूप माननेसे समस्त जीशंका खानपान रोग शोक हर्प विपाद आदि समस्त किया एकसी होना चाहिये, एक रोगीको भूख लगी तो
SR No.010387
Book TitleJiva aur Karmvichar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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