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जीव और फर्म- विचार ।
[ ६, नष्ट हो गया और नवीन जीव आस्वाद करनेवाला आ जानेसे स्वाद करना नहीं बनेगा ।
जीवको क्षणिक माननेसे गुण-गुणियों का संबंध नहीं वन सकेगा। गुण-गुणियाँका सबंध नित्य नहीं मानने से पदार्धकी सत्ता किसी प्रकार भी स्थिर नहीं रह सकी है ।
सभी पदार्थ क्षणिक माननेसे आकाशादि पदार्थों की नित्यनाका अभाव मानना पडेगा । वस्तु क्षणिकरूप मानने से महासत्ताका अभाव मानना पडेगा और अत्रांतर सत्ताका भी ( गुण गुणियों का सर्वथा नाश मानने से ) अमाव मानना पडेगा । इस प्रकार वस्तुको क्षणिक माननेसे वस्तुकी स्थिरता किसी प्रकार सिद्ध नहीं हो सकी है । वस्तु अपना अस्तित्व गुण-गुणियों का नित्य सबंध मानने से ही हो सकेगा ।
इस प्रकार वस्तुको क्षणिक माननेसे कर्म और कर्मफल सिद्धान्त सर्वथा नहीं होगा । इसलिये क्षणिक पदार्थ मानना यह युक्ति और आगमसे सर्वधा विरुद्ध है और प्रत्यक्ष प्रमाणसे भौ विरुद्ध है। क्योंकि एक मनुष्य पचास साठ वर्षपर्यंत अपना जीवन व्यतीत करता है और अपनी दश वर्षको आयुका सब स्मरण
बतलाता है इससे मालुम होता है कि जीव क्षणिक होता तो इस प्रकारका स्मरणज्ञान नहीं होना । इसलिये पदार्थ क्षणिक नहीं है ।
* बौद्ध मत वाले इसलिये मांसभक्षण करनेमें पाप नहीं मानते हैं इसी प्रकार अन्य पापके करने के लिये भी कोई वाध्यता नहीं है ।