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जीव और कर्म-विवार। [६५ नित्य माना है क्योंकि नित्य घस्तुका जन्म मरण नहीं हो सकता है और जन्म-मरणके विना परलोक नरक स्वर्ग आदि माने नहीं जा सके।नरक स्वर्ग माने बिना कर्म और कर्मफल क्यों माना जायगा? फर्म और कर्मफल नहीं माना जाय तव हो मनमाने पापकर्म अन्याय और भोगविलास-मोज मजा होगी। क्योंकि नित्य वस्तुमें कर्मफल भोगनेकी शक्ति नहीं है।
इस प्रकार धर्म-कर्म पाप-पुण्य और जप दानादिक उत्तम कमोंका लोप करनेके लिये वस्तुको कूटस्थनित्य मान लेना सबसे अच्छा उपाय है । न जन्म काडर है और न मरणका ही कुछ भय है। सब प्रकारसे मनमाने कार्य करो नीति और न्यायको भलेही खुटी पर धर दो सदाचारको भले ही मदिरा वनमेकी भट्ठोमें भस्म कर दो। चाहे सो करो।
क्षणिक जीव-विचार कितने ही विचारशील मनुष्य जीवको क्षणिक मानते हैं। जीवको क्षणिक मानना भी युक्ति और आगमसे सर्वथा विरुद्ध है।
जीवका स्वरूप क्षणिक किसी प्रकार सिद्ध नहीं होता है। बौद्ध आदि कितने ही मतवादी जीवको समय-समयमें नवीन नवीन उत्पन्न हुआ मानते हैं। एक मनुष्य-शरीरमें अनंत जीव क्षण-क्षणमें उत्पन्न होते हैं । इस प्रकार एक पर्यायमें क्षण-क्षणमें अनंत जीवोंकी उत्पत्ति मानना यह प्रत्यक्ष और परोक्ष प्रमाणसे सर्वथा विरुद्ध है।