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________________ जीव और फर्म विचार [६१ • इस प्रकार इत्याही गुणोंसे स्वभाव च्युति नहीं होती है परतु गुण और मून्य में परिणमन अवश्य ही होता है। फुटस्थनित्यका अर्ध द्रव्य लाने गुणोंको नहीं छोडती हैं एतायन्मान माननेसे विशेष हानि नहीं है। किंतु प्राय और गुणोंमें परिणमन अवश्य' ही मानना पडेगा व्य और गुणोंमें परिणमन प्रत्यक्ष दृष्टि गोचर हो रहा है। यदि जीवद्रव्य मोर जीरद्रव्यके गुणोंमे परिणमन नहीं माना जाय तो जोवद्रव्यशी अनादिकालसे जो अशद्ध अवस्था पर्मोदयके कारणसे हो रही है यह नही मानी जायगी । फर्म और कर्मफलका स्वरूप नहीं बनेगा । साथ २ में जांघद्रव्यका पूर्ण स्वरूप निश्चित नहीं हो सकेगा। छन्योंमें मगुरुलघु नामका एक गुण है जो ट्रन्योंमें निरंतर परिणमन फरानेमें सहकारी होता है। अनंतगुण हानि वृद्धि पटम्यानोंके द्वारा द्रव्यमें यह अगुस्लघु निरंतर कंगना ही रहता . है। जिसमे द्रव्य और गुण दोनोंमें निरनर परिणमन समय समय पर होता रहता है समय यद्यपि अत्यन्त सूक्ष्म हैं और - अगुल्लघु गुणके द्वारा अनंतगुण वृद्धि तथा अनंतगण हानि . आदि जो क्रियात्मक कार्य निरंतर होता है उससे वस्तु और वस्तुके स्वभाव (गुण ) में परिणमन होता ही रहना है। . · द्रव्यको चाहे अशुद्ध अवस्था हो अथवा शुद्ध यवस्था हो परंतु द्रव्य अपने मगुरुलघु गुणके द्वारा अनंतभोग वृद्धि अथवा हानि
SR No.010387
Book TitleJiva aur Karmvichar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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