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जीप और कर्म-विचार।
होता है। परंतु गुणोंमें परिणमन अवश्य होता है। आममें हरा रंग था ( हरा यह पुद्गलफा गुण ) संतु धाडेसे.समय बाद पोला होगया। इस प्रकार गुणोंमें परिणमन निरन्तर होता ही रहता है। इसलिये कूटस्थनित्यका अर्थ स्वभावच्युतिका नहीं होना मानकर गुणोंमें परिणमन नहीं माना जाय तो घस्तु अपना स्वरूप धारण कर नहीं सक्तो है। कूटस्थ नित्यका अर्थ खभावसे अच्युति भले ही मान लिया जाय परतु गुणोंमें परिणमन अवश्य हो मानना पडेगा। कूटस्थनित्यका अर्थ खमारसे अच्युति और अपरिणामी मानेंगे तो वस्तु कभी भी अपनी सत्ताको धारण नहीं कर सकेगो तथा भेद व्यवहार नहीं होगा। अर्थमें क्रियाकारकका अभाव मा जायगा। - गुणोंके परिणमनसे द्रव्यमें भी परिणमन निरंतर होता ही रहता है । क्योंकि गुणोंका समुदाय ही द्रव्य है। जो गुणोंमें परिणमन अप्रतिहत है तो द्रव्यका. परिणमन भी निरायाध सिद्ध है । आममें प्रथम खट्टा रस था परंतु पकने पर मीठा रस होगया यह गुण परिणमन होने पर द्रव्य ( आमद्रव्य ) में परिणमन हुआ कठिनसे नरम और मृद होगया। शून्यताका प्रसग आजायगा। गुणोंका अभाव हो नहीं सका है वस्तु अपने अस्तित्वको गुणोंसे ही धारण करती है। गुणोंका अभाव होनेपर शून्य भावको धारण करेगी। . . . . __ जो लोग मोक्षमे द्रव्य और गुणोंका अभाव मानते हैं वे 'अविचार है।