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५] जीप और फर्म-विचार ___ जो जोव-पदार्थको सर्वथा अपरिणामो मान लिया जाय तो शालक-वृद्ध-युवा आदि दशाओंका यभाव मानना पडेगा परंतु बालक-वृद्ध-युवा आदि पर्याय निरंतर उत्पन्न होती हो रहती हैं। तथा व्यवहारका लोप मानना पडेगा।, ..
व्यवहारमें नवीन घट-पटादिको उत्पत्ति निरंतर होती ही र. हती है । वनस्पति निरंतर अकुरित होतो है, मेव वृष्टि होती है, क्षणस्थायी विद्युत अपना चमत्कार बतलाती हो है इसप्रकार त्यवहारमें गृहादि समस्त पदार्थों में विनाश और उत्पाद प्रकर हो रहा है । जीव पदार्थ भी मरणको प्राप्त होता है। अपनी शरीर. पर्यायको छोडता है। जीव पदार्थ जन्मको प्राप्त होता है अपने कर्मोदयानुसार नवीन पर्याय धारण करता है यदि सर्वथा अप. रिणामी मान लिया जाय तो उपर्युक्त व्यवहारका सर्वथा लोप होगा। . . .".शरीरमें रोग होता है शरीरमें बल, वीर्य, तेज, - कानि वढती घटती है । जो जोच पदार्थ नित्य माना जाय तो उपर्युक्त क्रियाओं का अभाव हो जायगा। .. एक हो जीवको - एकसमय क्रोध होता है तो दूसरे समय उसी जीवको हर्ष होता है तीसरे समय शोक होता है चौथे समय उद्वेग होता है पाचवे समय संताप होता हैं छठे समयमें आनंदित होता है । इसप्रकार जीवमें क्षण क्षण नवीन पर्याय उत्पन्न होती हैं जो जीवको सर्वथा अपरिणामो मान लिया जाय तो ये पर्याय कैसे उत्वन्न हुई ? सर्वथा अपरिणामी वस्तुमें परिणमनः