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जीव और कर्म विचार ।
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जिनको स्वर्ग नरक की श्रद्धा नहीं है । उनको पुण्य की भी श्रद्धा नहीं है, जीवको भी श्रद्धा नहीं हैं। हिंसा झूठ चोरी आदि पापोंसे बचनेके लिये क्यों प्रयत्न करेंगे ? 'उनके विचारोंमें बुरे फर्मो का फल बुरा होता है और अच्छे कर्मों का फल अच्छा होता है यह बात प्रमाणित किस प्रकार दो
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सकी है ।
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पाप और
वे लोग
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" जो जैसा करेगा वह वैसा फल पायेगा” इस प्रकारकी धारणा और ऐसे विचार जीव धर्म और कर्मफल नहीं मानते वालों के कैसे हो सक हैं ? उनके हृदयमें नास्तिकता की दुर्गंध ऐसे विचारोंको किसी भी समय अंकुरित नहीं होने देती हैं । 'वे • समझते हैं जबकि जीव ही नहीं है तब पापकर्मो का फल कौन - भोगेगा ? और स्वर्ग नरफ हैं कहां ? यह सब लोगोंको एक प्रकार की डरावनी है जिस प्रकार बालकको दऊआका भय बतलाकर अपना मतलव बना लिया जाता है । उसी प्रकार पापका भय बतलाकर जनताको डराया जाता है ?-- वस इस प्रकारके उच्छृंखल विचारोंसे मस्तक में दुर्वासना भर जाती है ।
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- इस प्रकार उच्छृंखल विचारोंले मनुष्यों के कार्य स्वच्छन्दता से अनाति पूर्ण निंद्य हो जाते हैं । पापकर्मोके करने में जरा भी संकोच या लज्ञा प्राप्त नहीं होती हैं । नास्तिक शिक्षासे दीक्षित नवयुवक इसी प्रकार हो स्वच्छंदता से उद्धत और निद्यकर्म-निष्ट हो जाते हैं ।
समस्त मलिन वित्राका साम्राज्य, जीव, कर्म, कर्मफल नहीं