SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 51
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - जीव और कम-दिवार। [४६. न हो। मेरी भोगॉनी वासना असदाचार-पूण नीति रहिन दुर्व्यसनरूप न हो । मेरा ए भी ऐसा वर्तव्य न हो जिसले मुझे परलोक और इहलोप में शुम पल मिले। इसीलिये यह दान, पूजा व्रत, प. दप, संयम, ब्रह्मचर्य नादि धार्मिक पुण्यकार्यों भक्ति-पूर्वक विशुद्धपनले क्रता है. निष्कपटमाबाले निरभिनान पर्व पता है। वह राज्यका पालन इस प्रकार करता है कि जिससे प्रजाम सनीति अन्याय व्यसन और पाप क्मोंकी वृद्धि न हो । दुर्जनों पो (बर्नति करनेवालॉको) वह दंड देता है। सजनकी रक्षा. धर्मरक्षा, ननिरक्षा और स्वावारी मर्यादाकी रक्षाकल्येि करता है परंतु जिसदेशमें जीव-कर्म और कर्मफल नहीं मानते हैं वहीं परं प्रजा-पीडन अन्याय, अत्याचार, जुल्म-पूर्वक क्येि जाते हैं। अपने मोद-मजाके लिये निरपराध लैक्टों लाखों प्राणियोंके भारन्में दया नहीं जाती है। बच्ले आम द्वारा गांव गांव जला दिये जाते हैं। बम सादि विषैले पदार्थोलें दीन प्राणियों का एक्ताय बहार पिया जाता है । व्यभिचारमें धर्म मान लिया जाता है। झुठ बोलनेमें पाप नहीं माना जाता है। न्यायात्यों में मोन्यायके करने के लिये दिनदहा को सत्य और सत्यको ड्रडा सारित किया जाता है। बात बातमें धूसरे द्वारा गुपचुप त चोरियां की जाती है। श्रोता वृद्ध दुआ कि उसको गोलीके द्वारा समाप्त कर दिया जाता है। धन क्मानेके लिये क. साईखाने खोले जाते हैं। पशु-पक्षी आदि सुद तुमोको मार. पर अपना स्वार्य सिद्ध किया जाता है।
SR No.010387
Book TitleJiva aur Karmvichar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy