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________________ ४६] जीप और फर्म-विचार। निरावाय प्रमाणित होरही है। स्वलंघेदनहान द्वारा सबको व्यक्त हो रही है। सयके अनुभवमें भा रही है। चार्वाक और नास्तिक नीव-पदार्थको नहीं मानते हैं ? जीव-पदार्थ के नहीं माननेले संसारमें मन्याय अत्याचार और सुल्मोंकी मात्रा मर्यादातीत हो जाती है। किसी भी पापकर्मसे उनकोभय नहीं होता है और न पापकार्योंका विचार ही उन को उत्पन्न होता है, पिशाब फर्म, पाशविर और घोर निर्लजताके भयंकर र्म नास्तिक लोग करने में जरा भी नहीं हिचकते है। नास्तिक लोग पाप और पुण्यको भी नहीं मानते हैं, जब जीवपदार्थ ही स्वीकार नहीं है तव पुण्य और पाप क्यों मानने लगे। फल यह होता है कि हिसा, झूठ, चोरी, दुर्व्यसन आदि भयंकर मलितावरणले नास्तिक लोगोंका जीवन व्यतीत होता है। नास्तिक लोगोंका सिद्धान्त वही है उनने अपना ध्येय भी इसी प्रकार माना है । यथा पावनीवं सुखात् जीवेत् शृणं कृत्वा घृतं पिवेत् ।। भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुतः ॥१॥ अर्थ-जव तक जीवन है तब तक अपने शरीरको खूब सुखी बनाये रखे । यदि अपने पाल सुख-सामग्री न हो तो मृण कर सुन-लामो [घृत यादि सुख सामग्री ] को एकत्र करे, ऋण करनेसे पुत्र और स्वयं अपनेको दुःख होगा ऐसा विचार नहीं करना चाहिये क्योंकि देहवे. सत्मीभूत होने पर फिर कौन आता है । पुनर्जन्म किला होता है जो इसका फल भोगे।
SR No.010387
Book TitleJiva aur Karmvichar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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