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नीत्र भोर कर्म-विवार। [४५ शरीरफे अभ्यंतर अवश्य है उसके निमित्तसे समस्त कार्य ज्ञानपूर्वक स्वतंत्ररूपसे निरतंर होते रहते हैं। मृत्युफे पश्चात् वे कार्य चंद हो जाते हैं। इस प्रकारकी क्रियाओंसे भी जीय-पदार्थकी सिद्धि होती है।
जवकि सिद्धि के लिये कमी कभी मंत्रशास्त्र सटिशष्ट फल प्रदर्शित करता है। फिनने ही मंत्रवादी सर्पके द्वारा इंश किये हुये मनुष्यका वैरभाघ कारण प्रकट कराते हैं। उसमेंसे कितनेही पूर्वभय (जन्मांतर) के वैरभाषसे सर्पने दंश फिया और उसका अमुक प्रमाण है ऐसा स्पष्ट पतलाते हैं। कितने ही सर्व धनके स्थान पर घास करते है और धन न ग्रहण करनेके लिये जन्मांतरफा कारण स्पष्ट बतलाते हैं।
कितने ही मनवादी मंत्र द्वारा देव देवीके द्वारा पूर्वभवका संबंध उपकार प्रत्युपकार और अनुग्रह प्रगट करते हैं।
कितने ही मंत्रवादी रोगादि शमन करनेके लिये दान पुण्य फराते हैं। परमात्माफा जप, ध्यान, पूजन और भक्ति स्नपनादि फराते है और पूर्वभवके अशुभ कार्योंके प्रपल उदयको इस प्रकार ज्ञात करते हैं।
यह सब तब,ही बन सकता है जबकि जीव-पदार्थ और कर्म एवं कर्मफलको मान लिया जाय। अन्यथा तत्काल विनाशवंत क्षणिक पदार्थो में ऐसी :घटना किसी प्रकार भी संभावित नहीं हो सकी हैं।
इस प्रकार जीव-पदार्थकी सिद्धि प्रत्यक्ष परोक्ष प्रमाणसे