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________________ "जीव और कर्म- विचार । [ ४१ 2 ( सुतार ) था । एक सम्य इस सुतारने एक गाय को जो कुआ - में ( कूपमें) गिरने को तैयार होरही थी । उस गायको ऐसी कष्टदशामें देखकर उसको बचाने के लिये वह दौडा और उस गायको बचाने के बदले स्वयं वह कूपमें गिर गया और गिर कर प्राणांत हो गया, वही वालक वनारसमें एक श्रीमान् धनसंपन्न कुलीन ब्राह्मण के घर पर उत्पन्न हुआ। उस बालकने अपने तृतीय वर्षमें ही पूर्वभवकी सर्व कथा चतलाई । वह कूआ बतलाया । अपने स्त्री माता पिताका नाम बतलाया और अपने घरकी अनेक अप्रष्ट चातें वतलाई । इसी प्रकार आडके एक बालककी जन्मातरकी कथा से कर्म और कर्मों की फलप्राप्तिकी आश्चर्यरूप घटना पर सबको चमत्कार हुये बिना नहीं रहना है । जन्मांतरकी कथा वालकने अपने चतुर्थ वर्ष में समस्त लोगोंके सामने अपने माता पिताको वार चार कही प्रथम तो माता पिताका उस कथा को 'सुनकर विश्वास नहीं हुआ किंतु यह समझा कि वालकके मस्तक में विगाड हो गया है । या माई डमें गर्मी बढ़ गई दिखलाती है । इसलिये इसका अच्छा इलाज करना चाहिये। यह विचार बढे बढे प्रसिद्ध डाक्टरोंको कहा परन्तु उस बालक के मस्तककी परीक्षा यंत्र तंत्र और विज्ञान से पूर्ण की गई। सव डाक्टरोंने एक मतसे यही वतलाया कि वालकका मस्तक पूर्णरूपसे शुद्ध और निर्विकार है । इस बालकका जैसा उत्तम मस्तक है, वैसा अन्य चालकोंका कम होता है। माता पिताने सब प्रकारसे कई अन्य उपाय किये
SR No.010387
Book TitleJiva aur Karmvichar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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