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________________ नीवं और कर्म-विचार। जीवकी प्रत्यक्षता कभी कभी जातिस्मरणके द्वारा अनेक जीवोंको सर्वत्र सर्व कालमें होती रहती है। ऐसे अनेक उदाहरण प्रत्येक समय सर्व देशोंमें द्रष्टिगोचर होते हैं कि कितने ही बालक अपने पूर्व भवका स्वरूप प्रगट करते हैं। वे खुलेरूपमें स्पष्ट बतलाते हैं कि मैं यहा पर कैसे आगया, मेरा घर तो अमुक स्थानमें है और मैं अमुक व्यक्ति हूं। वह चालक अपने पूर्वभवकी पृथ्वीमें गढी हुई संपत्ति और अज्ञात विषयोंका दिग्दर्शन कराता है । जिसकी परीक्षा गवर्नमेंट द्वारा भी की जाती है और बड़े २ विद्वान करते हैं और जो जो बातें अपने जातिस्मरण की बालक बतलाता वह ज्योंकी त्यों नियमसे प्रमाणित होती हैं। __ ऐसे वालकोंकी जन्मातरोंकी उनके बतलाये कार्योंकी कथा समय समय पर सप्रमाण प्रकाशित होती है जो शोधकर्ताओंकी गहरी शोध सहित जगतको साक्षी बतलाती है कि शरीरमें जीव नामा पदार्थ अवश्य है और वह अपने अपने कर्मानुसार जन्म. जन्मातरको प्रकट करता है। ___ बनारसके एक वालककी जन्मातर की कथा लोगोंको उसके पूर्वभवमें किये हुये कर्मोके चमत्कारिक फलको साक्षात प्रकट करती है जिसको पढ़कर कर्म और फर्मोका फल एवं जीवके अस्तित्यका ही विश्वास नहीं होता है किंतु यह सुनिश्चित धोरणा होती है कि शुभकर्मो का फल जीवोंको अपूर्व सुख-संपतिका प्रदा. न करनेवाला और समस्त प्रकारकी विघ्नबाधाओंको अवश्य ही दूर करने वाला है। यह बालक पहले घरेलीमें एक अनपढ बढ़ई
SR No.010387
Book TitleJiva aur Karmvichar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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