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जीव और कर्म-विचार।
कार्य कैसे हो? पूर्वभवमें शुभ कार्य किये उसका फल गज्यपद
और अचानक धनप्राप्ति है परन्तु जीवको माने विना पूर्वभवमें फर्म किसने किये?
कृतकोंका फल अवश्य ही प्राप्त होता है जो जैपा कर्म करता है वह वैसा ही फल प्राप्त करता है । यह नीति और प्रत्यक्ष शुभाशुभ कर्मोंके फलको प्रकट करनेवाली युक्तिको जीव-पदार्थ माने बिना किस प्रकार संघटित कर सके हैं। . कृतकोका फल अवश्य ही भोगना पडता है, चाहे वह राजा हो, चाहे वह रड्डू हो, विद्वान् हो और चाहे वह मूर्ख अ. ज्ञानी हो। अपने अपने किये शुभाशुभ काँका फल अवश्व ही सवको भोगना पडेगा। चाहे इसलोकमें भोगो और चाहे परलोक. में भोगो। परंतु कृतकोका फल अवश्य ही भोगना पड़ेगा।
जीव-पदार्थ प्रत्यक्ष इन्द्रियोंसे दृष्टिगोचर नहीं है इसलिये नहीं है ऐसाही मान लिया जाय तो परमाणु आदि सूक्ष्म पदार्थ भी इन्द्रियगोचर नहीं होने से माने नहीं जा सके हैं। परन्तु जिस प्रकार परमाणुओंका कार्य (फल) स्कवादि प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर होनेसे परमाणुको अगत्या अवश्य मानना पडता है, क्योंकि कारण विना कोई भी कार्य नहीं होता है। इसी प्रकार यद्यपि जीव-पदार्थ अतिशय सूक्ष्म होनेसे इन्द्रिय दृष्टिगोचर नहीं है तो भी जीवके किये हुचे शुभाशुभ कार्योका फल ( कृतको का फल) प्रत्यक्ष दीखता है। इसलिये मालूम होता है कि जोव-पदार्थ अवश्य है अन्यथा कारण विना कार्य कैसे हुआ?