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________________ नीष और कर्म विचार मनकी सत्ता पचेन्द्रिय जीवोंमें ही होती है। यदि मनको __ ही जीव मान लिया जाय तो एकेन्द्रिय, दो इन्द्रिय, तीन इन्द्रिय चार इन्द्रिय जीवोंको मनका अभाव होनेसे जीव नहीं मानना पडेगा। जिन पंचेन्द्रिय जीवोंके मन है वे ही जीव होंगे और जिन जीवोंको मन नहीं है उनको जीव नहीं मानना पडेगा। इसलिये मनको जीव मानना सर्वथा विरुद्ध है। मनको मूर्तीक माननेसे आत्माकी कल्पना नहीं हो सकी है। यदि मनको अमूर्तिक मान लिया जाय तो वह जीवरूप स्वतंत्र वस्तु मानना पडेगी। असल में इन्द्रियोंके समान मनको जीव माननेमें अनेक प्रकारकी बाधा उपस्थित होती है। इसलिये मनको जीव सर्वथा मान नहीं सके हैं। आत्माको नहीं मानने वालोंकी जड़-पदार्थमें आत्म-कल्पना सिद्ध नहीं हो सकती है। फिर भी प्रश्न यह होता है कि शरीरमें आत्मा है या नहीं ? इस विषयमें पूर्व यह बतलाया है कि शरीरमें शरीरसे भिन्न आत्मा है। क्योंकि आत्माका अनुभव स्वसंवेदनज्ञानसे सयको होता है। ज्ञान-दर्शनकी शक्ति आत्मामें हो है शरीरमें नहीं है । सुख दुखका अनुभव आत्माकी सत्ताको सिद्ध करता है इस प्रकार अनुमान प्रमाण यात्माको सिद्ध करता है। ___ यदि शरीरमें आत्मा न माना जाय तो कृतकोंका फल कौन भोगता है ? यह वात प्रत्यक्ष सिद्ध है कि प्रत्येक जीवको अपने कृतकौंका फल भोगना पड़ता है। यदि शरीरमें जीवकी
SR No.010387
Book TitleJiva aur Karmvichar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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