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नीच और फम विचार। [३३ होगा, प्रत्येक समयर्म समस्त इंद्रियों का स्वाद सबको होना चाहिये सो कदापि नहीं होता है। एक समयमै समस्त इन्द्रियां अपना कार्य एक साथ नहीं करती हैं।
मृत्युके पधात् शरीरमें इन्द्रिया नष्ट नहीं हो जाती हैं किंतु जीवके परलोक गमन करनेसे इंद्रियोंसे देखने जानने की शक्ति नष्ट हो जाती है । इसलिये मालुम पड़ता है इंद्रियोंमें ज्ञान-दर्शनशक्ति नहीं है। किंतु इद्रियोंसे व्यतिरिक्त किसी अन्य पदार्थमं मानदर्शन शक्ति है वह जीव है। इसीलिये इंद्रियोंको जानने देखनेको शकिका मार्ग माना है।
इंद्रियों में जायकी सत्ता प्रत्यक्ष प्रमाणसे बाधित है। इन्द्रियों में जीवका वास है। जीवके प्रदेश इन्द्रियोंमें रहते हैं परंतु इन्द्रियां स्वयं जीवरूप नहीं हैं।
इन्द्रियां मूनिरूप हैं, जीव-पदार्थ अमूर्तिक है। जो इन्द्रियोंको ही जीव मान लिया जाय तो मुर्तिक पदार्थसे अमूर्तिक जीय-पदार्थ की उत्पत्ति मानना असतो प्रादुर्भाव मानना पडेगा। इसलिये इन्द्रिया जोवरूप नहीं हो सकी हैं।
इन्द्रियोंको जीव इसलिये भी नहीं मान सक है कि इन्द्रियों का विषय मूर्तिमान है परंतु ज्ञान-दर्शन अमूनिक पदार्थोंको भी विषयाधीन करता है।
इंद्रियोंको जीव माननेमें आगम-विरोध हैं । आगममें इन्द्रिया जडरूप वनलाई है और आत्माको मान-दर्शनमय बतलाया है। शरीर और इन्द्रियोंमें भेद नहीं है। शरीर वही इन्द्रिय रूप है'